“भाजपा ABVP के जरिए दलित और आदिवासी छात्रों पर अत्याचार करवा रही है”, ABVP और दलित छात्रों के बीच हिंसक झड़प कांग्रेस का हमला

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इंदौर के शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय में एबीवीपी और दलित एवं आदिवासी छात्रों के बीच झगड़ा एक गंभीर विवाद में बदल गया है। कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने भाजपा और एबीवीपी पर दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार का आरोप लगाया, जबकि एबीवीपी ने खुद को निर्दोष बताया।

MP News: इंदौर के शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय में एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) और होस्टल में रहने वाले दलित एवं आदिवासी छात्रों के बीच का विवाद अब एक गंभीर मुद्दा बन गया है। 21 अक्टूबर को एबीवीपी की कार्यकारिणी की घोषणा के बाद, संगठन के कार्यकर्ताओं ने कॉलेज परिसर में ढोल-नगाड़ों के साथ जश्न मनाना शुरू किया। यह जश्न कॉलेज के पास स्थित होस्टल तक पहुंच गया, जहां दलित और आदिवासी छात्र रहते हैं। जश्न की ध्वनि और उन्मादी वातावरण से होस्टल के छात्रों को परेशानी हुई, और उन्होंने इसका विरोध किया। इस विरोध के चलते एबीवीपी के कार्यकर्ताओं और होस्टल के छात्रों के बीच कहासुनी शुरू हो गई, जो जल्द ही हाथापाई में बदल गई। दोनों पक्षों के बीच हिंसा इस कदर बढ़ गई कि पुलिस को बीच में आना पड़ा और मामला थाने पहुंचा।

राजनीति में फंसा विवाद: उमंग सिंघार का भाजपा पर आरोप

घटना के बाद, यह विवाद केवल एक झगड़ा न रहकर राजनीतिक रूप से गरमा गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस मुद्दे पर भाजपा और एबीवीपी पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि भाजपा एबीवीपी के माध्यम से दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार कर रही है। सिंघार ने अपने बयान में एबीवीपी को “सड़कछाप गुंडों का संगठन” करार देते हुए कहा कि यह भाजपा की नई पीढ़ी को तैयार करने का मंच है, जो दलित और आदिवासी छात्रों को निशाना बनाती है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा समर्थित एबीवीपी कार्यकर्ता विश्वविद्यालय परिसर में दलित और आदिवासी छात्रों पर हमला कर रहे हैं, और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। सिंघार ने मुख्यमंत्री मोहन यादव से मांग की कि वे इस मामले में सख्त कार्रवाई करें और दोषियों को सजा दिलवाएं।

एबीवीपी का जवाब: उमंग सिंघार पर पलटवार

उमंग सिंघार के इस आरोप के बाद एबीवीपी ने भी तीखा पलटवार किया। एबीवीपी के इंदौर नगर अध्यक्ष सार्थक जैन ने कहा कि सिंघार को पूरी घटना की जानकारी नहीं है, और वे बिना तथ्यों को समझे बयान दे रहे हैं। सार्थक ने कहा कि कानून को हाथ में लेने का काम होस्टल के छात्रों ने किया और एबीवीपी कार्यकर्ताओं से मारपीट की गई। उन्होंने बताया कि पुलिस ने इस मामले में 5 होस्टल छात्रों के खिलाफ केस दर्ज किया है, जो यह साबित करता है कि एबीवीपी कार्यकर्ता दोषी नहीं हैं। वहीं, होस्टल के छात्रों का कहना है कि एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने बिना किसी उकसावे के उन पर हमला किया और जातिसूचक गालियां दीं। छात्रों ने यह भी आरोप लगाया कि एबीवीपी ने दलित और आदिवासी छात्रों को जानबूझकर निशाना बनाया, जो पहले से ही सामाजिक भेदभाव का सामना कर रहे हैं।

विरोध प्रदर्शन और धरना: दलित छात्रों का संघर्ष

इस घटना के बाद, विश्वविद्यालय परिसर में तनाव और भी बढ़ गया। दलित और आदिवासी छात्रों ने इस अन्याय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। छात्रों का कहना है कि यह केवल एक झगड़े की घटना नहीं है, बल्कि यह दलित और आदिवासी छात्रों पर हो रहे सामाजिक और शैक्षिक अन्याय का एक हिस्सा है। उनके अनुसार, एबीवीपी और प्रशासन मिलकर दलित छात्रों की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी छात्रों ने “दलितों के नाम पर राजनीति बंद करो” के नारे लगाए और एबीवीपी को विश्वविद्यालय से बाहर करने की मांग की।

क्या है असली विवाद?

विवाद की जड़ 21 अक्टूबर को हुई एक घटना में है, जब एबीवीपी कार्यकारिणी की घोषणा के बाद कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। इस जश्न में ढोल-नगाड़ों के साथ नाच-गाना किया जा रहा था, जिससे पास स्थित होस्टल के दलित और आदिवासी छात्रों को असुविधा हुई। जब होस्टल के छात्रों ने विरोध किया, तो दोनों पक्षों में बहस शुरू हो गई, जो जल्द ही हिंसक रूप ले ली। छात्रों का आरोप है कि एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने न सिर्फ गालियां दीं, बल्कि पत्थरबाजी भी की। इस घटना के बाद मामला पुलिस तक पहुंचा और दोनों पक्षों के खिलाफ केस दर्ज हुआ।

राजनीतिक विवाद से बढ़ी समस्या

इस विवाद ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी हो रही है, और दलित एवं आदिवासी छात्रों के साथ हो रहे अन्याय को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। उमंग सिंघार के आरोपों के बाद, कांग्रेस ने भाजपा पर सीधा हमला किया है, जबकि एबीवीपी ने खुद को निर्दोष बताते हुए कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। अब यह देखना होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन और राज्य सरकार इस मामले को किस तरह से हल करते हैं और क्या दलित छात्रों को न्याय मिलेगा या नहीं।

समाप्ति: समाधान की राह या और संघर्ष?

इंदौर के शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय का यह विवाद अब सिर्फ विश्वविद्यालय की सीमा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दलित और आदिवासी छात्रों के अधिकारों, सामाजिक न्याय और राजनीति के बड़े सवालों का प्रतीक बन गया है। विश्वविद्यालय परिसर में बढ़ते तनाव और राजनीतिक दलों के बीच चल रहे आरोप-प्रत्यारोप के बीच यह देखना अहम होगा कि प्रशासन इस मामले को कैसे संभालता है। दलित और आदिवासी छात्र अपनी मांगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और इस संघर्ष ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत के शैक्षिक संस्थानों में सभी छात्रों के लिए समान अवसर और न्याय सुनिश्चित हो रहा है?

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