हरियाणा चुनाव में नया मोड़, कुमारी सैलजा को भाजपा और बसपा का ऑफर, कांग्रेस में मचा हड़कंप

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कुमारी सैलजा को भाजपा और बसपा से अपनी पार्टी में शामिल होने के ऑफर मिले हैं। कांग्रेस में खुद को अलग-थलग महसूस कर रहीं सैलजा प्रचार से दूर हैं, जिससे हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।

Haryana Election: कुमारी सैलजा हरियाणा की राजनीति में एक प्रमुख दलित नेता के रूप में जानी जाती हैं, जिनका राजनीतिक कद और सियासी प्रभाव हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। पिछले कुछ समय से हरियाणा कांग्रेस में उनके प्रति उपेक्षा और जातिगत टिप्पणियों ने उन्हें नाराज कर दिया है, जिससे वे पार्टी से कुछ दूरी बनाती हुई नजर आ रही हैं। हाल ही में, कुमारी सैलजा ने सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता भी कम कर दी है, और पार्टी के प्रचार कार्यक्रमों में भी उनकी भागीदारी कम देखी जा रही है। उनके इस रुख के कारण राज्य के राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि सैलजा कांग्रेस छोड़कर भाजपा या बसपा का दामन थाम सकती हैं।

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कुमारी सैलजा को भाजपा और बसपा से प्रस्ताव मिला

कुमारी सैलजा को भाजपा और बसपा दोनों से प्रस्ताव मिला है। भाजपा की ओर से हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खुद सैलजा को अपने पाले में आने का न्योता दिया है, यह कहते हुए कि कांग्रेस में उन्हें अपमान झेलना पड़ा है और भाजपा में उन्हें पूरा सम्मान मिलेगा। वहीं, बसपा की ओर से आकाश आनंद ने भी सैलजा को पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है, यह दावा करते हुए कि कांग्रेस ने उन्हें कभी वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थीं, और बसपा में उन्हें पूरी प्रतिष्ठा मिलेगी।

17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं

सैलजा के प्रति इन पार्टियों की रुचि का मुख्य कारण उनका दलित वोट बैंक पर मजबूत पकड़ होना है। हरियाणा में दलित समाज की संख्या करीब 20 फीसदी है, और कुमारी सैलजा इस समुदाय की एक प्रमुख नेता मानी जाती हैं। उनका प्रभाव उन विधानसभा सीटों पर भी है, जहां दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हरियाणा की 90 में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, और इन पर सैलजा का प्रभावी हस्तक्षेप हो सकता है। उनके समर्थन से दलित वोट बैंक को साधने में भाजपा या बसपा को बड़ा लाभ हो सकता है, खासकर जब विधानसभा चुनाव 2024 नजदीक आ रहे हैं।

सैलजा कांग्रेस से नाराज

सैलजा के कांग्रेस से नाराज होने का एक बड़ा कारण नारनौंद में हुआ एक वाकया बताया जा रहा है, जहां कांग्रेस उम्मीदवार जस्सी पेटवाड़ के समर्थक ने उन पर जातिगत टिप्पणी की। इस घटना ने सैलजा को गहरे आहत किया, और विपक्ष का दावा है कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का हाथ था। इस अपमान के बावजूद पार्टी की चुप्पी और कोई ठोस कार्रवाई न होने से सैलजा ने खुद को अलग-थलग महसूस करना शुरू कर दिया है।

कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं

कुमारी सैलजा का सियासी सफर लंबा और प्रतिष्ठित रहा है। वे सिरसा से सांसद रह चुकी हैं और उन्होंने केंद्र सरकार में भी मंत्री पद संभाला है। कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा और उनकी कड़ी मेहनत ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत नेता बनाया है। लेकिन, हालिया घटनाक्रम ने उनकी पार्टी के प्रति नाराजगी को सार्वजनिक कर दिया है, और उनके अगले कदम पर पूरे राज्य की नजरें टिकी हैं। अगर सैलजा भाजपा या बसपा का दामन थामती हैं, तो यह हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है, जिससे कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, और भाजपा या बसपा के लिए दलित वोटरों को आकर्षित करने में बड़ी सफलता मिल सकती है।

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कुल मिलाकर, कुमारी सैलजा का हरियाणा की राजनीति में जो प्रभाव और सियासी ताकत है, वह उन्हें न केवल कांग्रेस, बल्कि दूसरी पार्टियों के लिए भी एक आकर्षक नेता बनाती है।

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