BJP सरकार की योजना पर उठे सवाल: 20 महीने बाद दलित-आदिवासी अधिकारियों के चक्कर काट रहे; दबंगों के कब्जे में जमीन

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भले ही सरकारें समय-समय पर दलितों के लिए योजनाएं और नीतियां बनाती रही हैं, लेकिन वे उन तक पहुंचते-पहुंचते अपनी मूल भावना खो देती हैं. जैसे मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासी  समुदायों को आवासीय पट्टे देने की योजना 4 जनवरी 2023 को शुरू की गई थी। हालांकि, योजना के 20 महीने बाद भी इन्हे जमीन पर कब्जा नहीं मिला है।

MP News: ये समस्या हमारे देश की गहरी समाजिक और जातिगत संरचनाओं में जमी हुई है, जहां सदियों से दलित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है। सरकारी योजनाओं के तहत दलितों और आदिवासियों को जमीन, आवास, और अन्य सुविधाएं प्रदान करने की कोशिशें की जाती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि जो योजनाएं उनके कल्याण के लिए चलाई जाती हैं, वे उन तक पहुंचते-पहुंचते अपनी मूल भावना खो देती हैं, या भ्रष्टाचार, जातिगत भेदभाव, और प्रशासनिक उदासीनता के कारण निष्फल हो जाती हैं।

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2023 में दलितों के लिए आवासीय पट्टों का वितरण किया

टीकमगढ़ जिले का उदाहरण इसका जीवंत उदाहरण है। 4 जनवरी 2023 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टीकमगढ़ के बगाज माता मंदिर में दलित और आदिवासी समुदायों के लिए आवासीय पट्टों का वितरण किया। यह एक बड़े पैमाने पर आयोजित कार्यक्रम था, जिसमें हजारों लोगों को अपने आवासीय पट्टों का वितरण किया गया। मंच से मुख्यमंत्री ने खुद कई लोगों को पट्टे दिए और यह वादा किया कि उन्हें जल्द ही जमीन पर कब्जा मिल जाएगा ताकि वे अपने आवास का निर्माण कर सकें। इस योजना के तहत विशेष रूप से भूमिहीन दलितों और आदिवासियों को लाभान्वित करना था, जो अपने अधिकारों से वंचित थे।

दलित समुदाय दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं

हालांकि, 20 महीने बीत जाने के बाद भी, इनमें से अधिकांश लाभार्थियों को न तो जमीन पर कब्जा मिला और न ही आवासीय पट्टों का कोई ठोस लाभ। केशवगढ़ ग्राम पंचायत के 64 लाभार्थी, जिन्हें मुख्यमंत्री द्वारा पट्टे वितरित किए गए थे, आज भी प्रशासनिक अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कई बार मोहनगढ़ तहसीलदार, जतारा एसडीएम, और टीकमगढ़ कलेक्टर को आवेदन दिए, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। जिन जमीनों पर उन्हें कब्जा मिलना था, वहां पर गांव के दबंगों का कब्जा है, और प्रशासन इस अतिक्रमण को हटाने में नाकाम रहा है।

हर जगह दलित समुदाय का यही हाल हैं

यह स्थिति केवल एक गांव या एक जिले तक सीमित नहीं है। मध्यप्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में भी दलितों के साथ ऐसा ही व्यवहार होता रहा है। उन्हें योजनाओं में नाम तो मिल जाता है, लेकिन जब वास्तविक लाभ पहुंचाने की बात आती है, तो भ्रष्टाचार, दबंगई और प्रशासनिक लापरवाही के कारण वे पीछे छूट जाते हैं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है, बल्कि उनके आत्मसम्मान और मानवाधिकारों का भी हनन होता है।

सरकार चुप हैं

सरकार की चुप्पी या धीमी कार्रवाई इस समस्या को और बढ़ावा देती है। दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों और अन्याय को नजरअंदाज करना या धीमी गति से प्रतिक्रिया देना यह दर्शाता है कि समाज के इस कमजोर वर्ग की समस्याएं सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं हैं। राजनीतिक मजबूरियों और जातिगत समीकरणों के चलते, कई बार सरकारें दबंगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से बचती हैं, जो कि इस तरह के भेदभाव और अत्याचारों को बढ़ावा देता है।

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दलितों पर ऐसे अत्याचार और अन्याय का अंत कब होगा

दलित समुदायों की स्थिति सुधारने के लिए केवल योजनाएं और नीतियां बनाना पर्याप्त नहीं है। इन नीतियों को सही तरीके से लागू करना, प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना, और सामाजिक स्तर पर जातिगत भेदभाव के खिलाफ सख्त कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है। जब तक समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक दलितों के साथ हो रहे ऐसे अत्याचार और अन्याय का अंत नहीं होगा। यह केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है कि वह दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर काम करे और उन्हें वह सम्मान और समानता दिलाए, जिसके वे हकदार हैं।

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