“आदिवासी समाज वह समुदाय है, जो आज के आधुनिक युग में भी जल, जंगल, और जमीन को संरक्षित करने का निरंतर प्रयास कर रहा है। यह वह समाज है, जो प्रकृति को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानता है और उसकी पूजा करता है। उनकी जीवनशैली प्रकृति के साथ गहरे सामंजस्य में रची-बसी है। आज का दिन उन्हीं महान लोगों को समर्पित है, जिन्होंने सदियों से प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और संरक्षण किया है।
हर साल 9 अगस्त को “विश्व आदिवासी दिवस” मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) द्वारा 23 दिसंबर 1994 को की गई थी। इस दिन को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर के आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनकी संस्कृति, और उनके योगदान को पहचान दिलाना है। हालांकि कुछ प्रमुख राज्य है जो इस दिन को बड़े ही धूमधाम के साथ मानते हैं। इसमें झारखंड सबसे प्रथम स्थान पर आता है जिसके बाद छत्तीसगढ़ उड़ीसा समेत तमाम ऐसे कई राज्य हैं जहाँ विश्व आदिवासी दिवस इसे बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
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क्यों मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस :
1. आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा: आदिवासी समुदायों को लंबे समय से उनके अधिकारों और संसाधनों से वंचित किया जाता रहा है। यह दिवस उनके अधिकारों की सुरक्षा और उनकी समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाने का एक अवसर है।
2. सांस्कृतिक संरक्षण: आदिवासी समाज की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर, परंपराएं, और रीति-रिवाज होते हैं। इस दिवस का उद्देश्य उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना और उसे मान्यता दिलाना है।
3. आर्थिक और सामाजिक उत्थान: आदिवासी समुदाय अक्सर आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होते हैं। इस दिन उनके उत्थान के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों को लागू करने पर जोर दिया जाता है।
क्या कहता है इतिहास:
विश्व आदिवासी दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई थी, जब उसने 1982 में “आदिवासी लोगों पर कार्यदल” (Working Group on Indigenous Populations) का गठन किया। इस कार्यदल का उद्देश्य था आदिवासी समुदायों की समस्याओं और उनके अधिकारों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना। इसके बाद, 1994 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि आदिवासी समाज ने मानवता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, और उनके अधिकारों की सुरक्षा और उनकी सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है।
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विश्व आदिवासी दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
विश्व आदिवासी दिवस का उद्देश्य आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर, उनके हक़ और अधिकारों की सुरक्षा, और उनकी विशिष्ट पहचान को सम्मान देने पर केंद्रित है। यह दिवस केवल आदिवासी समुदायों की समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक विविधताओं का उत्सव नहीं है, बल्कि उन चुनौतियों और समस्याओं को उजागर करने का अवसर भी है, जिनका सामना ये समुदाय कर रहे हैं। आज, हमारा कर्तव्य है कि हम आदिवासी समाज की आवाज़ को सुने, उनके संघर्षों को समझें, और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि समाज की समृद्धि तभी संभव है, जब हम सभी समुदायों को समानता और सम्मान के साथ देखेंगे।
आदिवासी समाज लगातार कर रहा मांग :
आदिवासी समाज का वह तबका जो पड़ा लिखा है और अधिकारों को बेहतर समझता है वह लगातार कुछ कानूनों की मांग कर रहा.. और वो कानून हैं.
वनाधिकार कानून 2006:
वनाधिकार कानून 2006 आदिवासी समुदायों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कानून उन्हें उनकी पारंपरिक भूमि पर अधिकार देता है। हालांकि, इस कानून के क्रियान्वयन में कई समस्याएं आई हैं। कई आदिवासी परिवारों को अब तक उनकी भूमि पर पट्टा नहीं मिला है, जिससे वे अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। सरकार से यह मांग की जा रही है कि वे इस कानून को प्रभावी रूप से लागू करें और सभी पात्र आदिवासियों को उनकी भूमि का पट्टा सुनिश्चित करें।
वन संरक्षण अधिनियम 2022 और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 2023:
इन अधिनियमों ने कई आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक जंगलों से बेदखल कर दिया है। आदिवासी समुदायों का मानना है कि ये कानून उनके अधिकारों और जीवन शैली के खिलाफ हैं। इसलिए, इन कानूनों को रद्द करने और आदिवासियों के पारंपरिक जीवन और वन अधिकारों की रक्षा की मांग की जा रही है।
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आदिवासियों का धर्म कोड:
भारत की जनगणना में आदिवासी समुदायों को विभिन्न धर्मों के अंतर्गत गिना जाता है, जबकि उनकी अपनी विशिष्ट धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं होती हैं। इसलिए, यह मांग की जा रही है कि उन्हें एक अलग धर्म कोड दिया जाए, ताकि उनकी धार्मिक पहचान को मान्यता मिल सके और उनकी सांस्कृतिक पहचान संरक्षित हो सके।
मणिपुर में अधिकारों की रक्षा:
मणिपुर में आदिवासी समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा एक प्रमुख मुद्दा है। हाल के समय में वहां आदिवासी समुदायों के अधिकारों का हनन हुआ है और उन्हें उनके भूमि और संसाधनों से वंचित किया गया है। इस अन्याय को रोकने के लिए सरकार से ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
हसदेव और निकोबार जंगल की कटाई और विस्थापन पर रोक:
इन क्षेत्रों में जंगलों की कटाई और आदिवासी विस्थापन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे पर्यावरण और आदिवासी समुदायों की आजीविका दोनों ही खतरे में पड़ गई हैं। इसलिए, इन क्षेत्रों में जंगलों की कटाई और आदिवासी विस्थापन पर तुरंत रोक लगाने की मांग की जा रही है।
ST SC क्रीमी लेयर के खिलाफ संसद में अध्यादेश की मांग:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची में वर्गीकरण के फैसले के खिलाफ आदिवासी समुदायों में नाराजगी है। इस वर्गीकरण से उनके अधिकारों और आरक्षण का लाभ सीमित हो सकता है। इसलिए, यह मांग की जा रही है कि संसद इस फैसले के खिलाफ अध्यादेश जारी करे और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।”
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