संसद में भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी बहस हुई। राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर संविधान में बार-बार बदलाव करने का आरोप लगाया, जबकि प्रियंका गांधी ने भाजपा पर संविधान को बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया। चंद्रशेखर आजाद ने दलितों के अधिकारों की उपेक्षा की आलोचना की, जबकि शांभवी चौधरी ने कांग्रेस पर संविधान को कमजोर करने का आरोप लगाया।
भारत के संविधान के 75 साल पूरे होने पर संसद में विशेष चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय राजनीति की दो प्रमुख पार्टियाँ—भा.ज.पा. और कांग्रेस—एक बार फिर संविधान को लेकर आमने-सामने आ गईं। यह चर्चा न केवल संविधान की ऐतिहासिक यात्रा पर केंद्रित थी, बल्कि इसमें दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला। विशेष रूप से भाजपा और कांग्रेस ने एक-दूसरे पर संविधान के बदलाव की कोशिश करने का आरोप लगाया, जिससे सदन में तीखी बहस हुई।
राजनाथ सिंह का आरोप: कांग्रेस ने संविधान को मनमाने तरीके से बदला
इस चर्चा की शुरुआत करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान संविधान में बार-बार बदलाव किया। राजनाथ सिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 17 बार, इंदिरा गांधी ने 28 बार, और राजीव गांधी ने 10 बार संविधान में संशोधन किए। इसी तरह, यूपीए सरकार के दौरान भी संविधान में कई बार बदलाव हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने संविधान को मनमाने तरीके से तोड़ा-मोड़ा और अब वह भाजपा पर संविधान को बदलने का आरोप लगा रही है।
प्रियंका गांधी का पलटवार: भाजपा संविधान बदलने की कोशिश कर रही है
राजनाथ सिंह के आरोपों के जवाब में कांग्रेस की सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा ने भाजपा पर तीखा हमला किया। प्रियंका ने कहा कि यदि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिलता तो वह संविधान को बदलने का प्रयास करती। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने जनता के बीच जाकर भाजपा के इस मंसूबे को विफल किया। प्रियंका ने आरोप लगाया कि भाजपा का असली इरादा संविधान के मूल्यों को खत्म करने का था, लेकिन कांग्रेस ने इसके खिलाफ जन जागरूकता फैलाकर भाजपा को राजनीतिक दबाव में रखा।
संविधान पर बहस में सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जिक्र
संविधान पर इस बहस के दौरान जब राजनाथ सिंह ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी और विनायक दामोदर सावरकर का जिक्र किया, तो कांग्रेस सदस्य भड़क उठे। कांग्रेस के सांसदों ने इस पर हंगामा किया और आरोप लगाया कि भाजपा अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को गलत तरीके से पेश कर रही है। यह मुद्दा कांग्रेस और भाजपा के बीच गहरे वैचारिक मतभेदों को उजागर करता है।
चंद्रशेखर आजाद की सख्त टिप्पणी: संविधान पर दलितों की आवाज दबाई जा रही है
संविधान पर चर्चा के दौरान आजाद समाज पार्टी के नेता और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी अपनी बात रखी। चंद्रशेखर ने कहा कि संविधान के द्वारा दलितों और पिछड़े वर्गों को दिए गए अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज भी संविधान के अनुच्छेद 25-26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की बात की जाती है, लेकिन दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों को वह स्वतंत्रता नहीं मिल रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सरकार आर्थिक समानता के लिए क्या कदम उठा रही है, जब समाज में अमीर और गरीब के बीच खाई और गहरी हो रही है।
चंद्रशेखर ने विशेष रूप से इस बात पर भी नाराजगी जताई कि उन्हें लोकसभा में बोलने का उचित समय नहीं दिया जा रहा था। उनका कहना था कि संविधान के निर्माता और उनके संघर्ष को दरकिनार किया जा रहा है, और दलितों के अधिकारों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
शांभवी चौधरी ने कांग्रेस पर तीखा हमला किया
वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने संविधान पर बहस के दौरान कांग्रेस पर हमला किया। शांभवी ने कहा कि विपक्ष बार-बार संविधान को कमजोर करने की कोशिश करता है, लेकिन भाजपा ने संविधान की रक्षा की है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी दलों के पास संविधान को लेकर कोई स्पष्ट विचार नहीं है। शांभवी ने यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान को दरकिनार किया है और संविधान को कमजोर करने का प्रयास किया है।
संविधान के अनुच्छेद 25-26 का जिक्र
चंद्रशेखर आजाद और शांभवी चौधरी दोनों ने संविधान के अनुच्छेद 25-26 का जिक्र करते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सभी को समान रूप से मिलना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह है कि मुसलमानों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो रहा है। चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार आलोचना से डरती है और विपक्ष को बोलने का मौका नहीं देती, जबकि संविधान सभी को बोलने का अधिकार देता है।
संविधान पर संघर्ष और इसके मौलिक सिद्धांतों की रक्षा
यह बहस इस बात को दर्शाती है कि भारतीय संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज़ है, बल्कि यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक भी है। इस समय संविधान को लेकर जो राजनीतिक घमासान चल रहा है, वह इस बात का संकेत है कि भारतीय लोकतंत्र में संविधान का स्थान कितना महत्वपूर्ण है। यह बहस इस बात पर भी केंद्रित है कि संविधान के मौलिक अधिकारों और सिद्धांतों की रक्षा की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि विपक्ष और जनता की भी है।
इस बहस से यह भी साफ हो गया कि संविधान पर कोई भी चर्चा केवल कानूनी या शैक्षिक नहीं हो सकती, क्योंकि इसका सीधा संबंध देश के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे से है।
निष्कर्ष:
संसद में संविधान पर यह बहस न केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी भिड़ंत का परिणाम है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में संविधान की महत्ता और उसके प्रति दलों के दृष्टिकोण का भी परिचायक है। संविधान के 75 वर्षों की यात्रा पर विचार करते हुए यह आवश्यक है कि हम इसके मूल्यों की रक्षा करें और सुनिश्चित करें कि यह सबके लिए समान रूप से लागू हो।
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