उत्तर प्रदेश के कुंदरकी विधानसभा उपचुनाव में बसपा ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा को प्रत्याशी बनाकर सपा के खिलाफ चुनावी रणनीति तैयार की है। इस गठजोड़ से सपा का वोट बैंक प्रभावित हो सकता है, जिससे बसपा को पिछले चुनावों की तरह सफलता मिलने की संभावना है।
UP News: उत्तर प्रदेश की कुंदरकी विधानसभा सीट पर बसपा ने एक बार फिर दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे चुनावी दौड़ में कदम रखा है। इस बार बसपा ने उपचुनाव लड़ने के लिए अपने प्रत्याशी की घोषणा में तेजी दिखाई है। कुंदरकी सीट पर रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा को उम्मीदवार बनाकर बसपा ने एक रणनीतिक फैसला लिया है, जिसका सीधा असर सपा के चुनावी समीकरण पर पड़ेगा। दरअसल, बसपा के जातिगत समीकरण से सपा का चुनावी खेल बिगड़ सकता है, जिससे वोट बैंक में सेंध लगाने की संभावना बनी हुई है।
चुनावी समीकरण में बदलाव की संभावना
कुंदरकी उपचुनाव में पिछले तीन विधानसभा चुनावों में सपा का ही वर्चस्व रहा है। हालांकि, बसपा ने इस सीट पर दो बार जीत हासिल की है, जो कि 2007 और 1996 में हुई थी। सपा के लिए यह सीट महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले चुनावों में सपा उम्मीदवार चार बार जीत दर्ज कर चुके हैं। जबकि, बसपा को आखिरी बार 2007 में जीत मिली थी। 1993 में बसपा ने यहां केवल एक बार कमल खिलाने में सफलता पाई थी।
दलित-मुस्लिम गठजोड़
बसपा ने रफतउल्ला उर्फ नेता छिद्दा पर दांव लगाकर दलित-मुस्लिम गठजोड़ को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। इस समीकरण के सहारे बसपा ने 2007 और 1996 में सपा के वर्चस्व को तोड़ने में सफलता पाई थी। इससे पहले, 2009 के लोकसभा चुनाव में संभल से डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को उम्मीदवार बनाकर बसपा ने जीत हासिल की थी, जो कि इस गठजोड़ की सफलता को दर्शाता है।
पिछले चुनावों का आंकड़ा
हाल के लोकसभा चुनाव में कुंदरकी सीट पर बसपा के उम्मीदवार सौलत अली को 31,400 वोट मिले थे, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के हाजी रिजवान को 42,000 से अधिक मत मिले थे। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि बसपा के लिए यहां की राजनीतिक स्थिति मजबूत हो सकती है। दूसरी ओर, छिद्दा के सहारे बसपा सपा के परंपरागत वोट बैंक में भी सेंध लगा सकती है, जिससे इस बार की चुनावी प्रतिस्पर्धा और भी रोचक हो सकती है।
सपा-बसपा गठबंधन का प्रभाव
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने यहां जबरदस्त प्रदर्शन किया था, जिसमें सपा के उम्मीदवार डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे डेढ़ लाख से अधिक वोट मिले थे। यह स्थिति दर्शाती है कि कुंदरकी विधानसभा सीट पर गठबंधन प्रत्याशी का प्रभाव निर्णायक साबित हो सकता है।
अकबर हुसैन की भूमिका
कुंदरकी सीट पर बसपा की जीत के पीछे प्रमुख भूमिका निभाने वाले अकबर हुसैन को भी याद करना जरूरी है। उन्होंने 2007 में 50,000 से अधिक मत पाकर बसपा को जीत दिलाई थी। 1996 में भी उन्होंने 51,000 से अधिक वोट लेकर सपा को शिकस्त दी थी। इन दोनों चुनावों में सपा के हाजी रिजवान ने दूसरे स्थान पर रहने का सामना किया।
चुनावी भविष्य की प्रतीक्षा
कुंदरकी विधानसभा उपचुनाव में सभी की नजरें अब सपा और भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा पर टिकी हुई हैं। बसपा ने एक बार फिर दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे अपनी चुनावी रणनीति को मजबूती से प्रस्तुत किया है। यदि यह गठजोड़ सफल रहता है, तो सपा का परंपरागत वोट बैंक प्रभावित हो सकता है, जिससे चुनावी परिणामों में बड़ा बदलाव आ सकता है। बसपा की यह रणनीति एक बार फिर मायावती की चुनावी चातुर्य को सिद्ध कर सकती है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।