बलरामपुर में 2014 के पेड़ काटने के विवाद से जुड़े दलित उत्पीड़न और मारपीट के मामले में कोर्ट ने चार दोषियों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई है। साथ ही, प्रत्येक पर 4,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। जुर्माना न देने पर 15 महीने अतिरिक्त कारावास होगा। सात गवाहों के आधार पर विशेष सत्र न्यायालय ने यह फैसला सुनाया, जिसे दलित समुदाय ने न्याय की जीत बताया।
Chhattisgarh: बलरामपुर जिले में दलित उत्पीड़न और मारपीट के एक दशक पुराने मामले में विशेष सत्र न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट, इफ्तेखार अहमद ने न्याय का उदाहरण प्रस्तुत किया। न्यायालय ने दोषी पाए गए चार व्यक्तियों शंकरनाथ, सिद्धनाथ, नागा और करीकेन को तीन-तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही, दोषियों को चार-चार हजार रुपये का जुर्माना भी अदा करने का आदेश दिया गया। यदि दोषी अर्थदंड अदा करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें 15-15 महीने का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
घटना का विवरण: पेड़ काटने से शुरू हुआ विवाद
यह मामला 9 अप्रैल 2014 का है, जब तुलसीपुर थाना क्षेत्र के गांव बेली खुर्द में एक पेड़ काटने को लेकर विवाद हुआ। गांव के निवासी प्रभु दयाल ने आरोप लगाया कि शंकरनाथ, सिद्धनाथ, नागा और करीकेन ने उनके साथ मारपीट की और जातिसूचक गालियां दीं। पीड़ित ने इस मामले में दलित उत्पीड़न और हिंसा का आरोप लगाते हुए थाना तुलसीपुर में तहरीर दी। इस मामले ने जल्द ही अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का ध्यान आकर्षित किया, जिसके आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
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कानूनी प्रक्रिया: गवाह और प्रमाण बने आधार
पुलिस की जांच पूरी होने के बाद आरोपपत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। मामले के सत्र परीक्षण के दौरान विशेष लोक अभियोजक एससी-एसटी एक्ट ने सात प्रमुख गवाहों को न्यायालय में प्रस्तुत किया। गवाहों ने घटना के समय की घटनाओं को प्रमाणित करते हुए अदालत के समक्ष स्पष्ट बयान दिए। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने और पत्रावली का गहराई से अध्ययन करने के बाद न्यायाधीश ने चारों आरोपियों को दोषी करार दिया।
दोषियों की सजा और जुर्माना
न्यायालय ने दोषियों को तीन-तीन साल के कारावास की सजा सुनाई और चार-चार हजार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया। यह भी स्पष्ट किया गया कि जुर्माना न देने की स्थिति में दोषियों को 15-15 महीने का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
न्याय का संदेश: दलित उत्पीड़न के खिलाफ सख्त रुख
यह फैसला दलित उत्पीड़न के मामलों में न्याय की जीत और समाज में समानता की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है। विशेष सत्र न्यायालय ने यह दिखा दिया कि जातिगत भेदभाव और हिंसा करने वालों को किसी भी स्थिति में बख्शा नहीं जाएगा। इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि दलित समाज के खिलाफ होने वाले अपराधों को गंभीरता से लिया जाएगा और दोषियों को सजा मिलेगी।
प्रभु दयाल और समुदाय ने राहत की सांस ली
फैसले के बाद पीड़ित प्रभु दयाल और उनके परिवार ने राहत की सांस ली। उन्होंने न्यायपालिका के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि यह फैसला अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों को प्रेरित करेगा। गांव के दलित समुदाय ने इस निर्णय का स्वागत किया और इसे न्याय के लिए संघर्ष का महत्वपूर्ण परिणाम बताया।
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सामाजिक सुधार की दिशा में कदम
यह निर्णय न केवल दोषियों को उनके कृत्य की सजा देता है, बल्कि समाज में जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी प्रसारित करता है। बलरामपुर की यह घटना यह साबित करती है कि न्यायपालिका जातिगत उत्पीड़न के मामलों में निष्पक्षता से कार्य करती है। यह फैसला न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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