शिक्षा का मंदिर बना हिंसा का केंद्र: क्लासरूम में छात्रों के बीच हुई झड़प में दलित छात्र की मौत

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बिहार में 10वीं कक्षा के एक दलित छात्र को बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला गया। उसका अपराध सिर्फ इतना था कि वह दलित समुदाय से था, और उसके साथियों ने उसे अपनी गुस्सैल मानसिकता और जातिवादी सोच का निशाना बनाया। आखिर हमारे समाज में दलित समुदाय कब तक इस तरह की हिंसा और भेदभाव का शिकार होता रहेगा?

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां जातीय भेदभाव और हिंसा का शिकार एक दलित छात्र बन गया। कक्षा में आपसी विवाद के दौरान हुई मारपीट में 10वीं कक्षा के सौरभ नामक छात्र को बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला गया। सौरभ का अपराध सिर्फ इतना था कि वह दलित समुदाय से था, और उसके साथियों ने उसे अपनी गुस्सैल मानसिकता और जातिवादी सोच का निशाना बनाया। इस निर्मम घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर हमारे समाज में दलित समुदाय कब तक इस तरह की हिंसा और भेदभाव का शिकार होता रहेगा?

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जातीय हिंसा की विभीषिका: स्कूल भी सुरक्षित नहीं

आज जब हमारे देश में शिक्षा का मंदिर कहा जाने वाला स्कूल भी जातीय हिंसा का केंद्र बन गया है, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। स्कूल वह जगह होती है जहां बच्चे एक दूसरे के साथ मिल-जुलकर सीखते हैं, भविष्य के लिए तैयार होते हैं, लेकिन यहां पर सौरभ जैसे दलित छात्रों को अपने साथियों के हाथों ही अपनी जान गंवानी पड़ रही है। यह घटना न सिर्फ एक दलित छात्र की हत्या का मामला है, बल्कि यह पूरे दलित समुदाय के खिलाफ फैली नफरत और भेदभाव का प्रतीक है, जो समाज की गहरी समस्याओं को उजागर करता है।

समाज की खामोशी और जातिवाद की जड़ें

सौरभ की हत्या कोई साधारण झड़प का नतीजा नहीं थी, यह उस जातिवाद की गहरी जड़ें हैं जो आज भी हमारे समाज में फैली हुई हैं। वीडियो में देखा जा सकता है कि किस तरह सौरभ को निर्दयता से पीटा गया, डंडों से उसकी बुरी तरह पिटाई की गई, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना के बाद हमलावर छात्र भाग खड़े हुए, लेकिन समाज की खामोशी और प्रशासन की लापरवाही ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि दलित समुदाय की आवाज आज भी अनसुनी की जाती है। यह घटना हमारे समाज की उन दरारों को दिखाती है, जहां जातिवाद और सामाजिक भेदभाव से जूझते दलितों को बराबरी का हक नहीं मिलता।

दलितों पर बढ़ती हिंसा: कब थमेगा यह सिलसिला?

सौरभ की मौत ने पूरे देश में दलित समुदाय के खिलाफ होने वाली बढ़ती हिंसा पर एक बार फिर से ध्यान केंद्रित किया है। पिछले कुछ सालों में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, और इस बार यह हिंसा एक ऐसे स्थान पर हुई है, जहां बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं – यानी स्कूल। यह घटना बताती है कि हमारे देश में दलितों की सुरक्षा और उनकी गरिमा आज भी खतरे में है, चाहे वह गांव हो, शहर हो या फिर स्कूल की चारदीवारी।

न्याय की पुकार: सौरभ के परिवार के साथ खड़ा हो समाज

सौरभ का परिवार आज न्याय की मांग कर रहा है। वे अपने बेटे को खो चुके हैं, और अब चाहते हैं कि दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिले। लेकिन यह सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं है, यह पूरे दलित समुदाय की लड़ाई है, जो सदियों से भेदभाव और अत्याचार का शिकार होता आ रहा है। सौरभ की मौत हमारे समाज को एक चेतावनी है कि अगर अब भी जातिवाद और हिंसा के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो हम आने वाली पीढ़ियों को एक विभाजित और असुरक्षित समाज देंगे।

क्या होगा भविष्य: दलित छात्रों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो?

सवाल यह उठता है कि अब आगे क्या? क्या सौरभ जैसे दलित छात्रों को शिक्षा संस्थानों में भी अपनी जान का खतरा महसूस करना पड़ेगा? क्या हमारे समाज में कभी वह दिन आएगा, जब दलित छात्र बिना किसी भय के, अपने हक के साथ जी सकेंगे और शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे? यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि अगर हमारे बच्चे स्कूल में भी जातिवादी हिंसा का शिकार होंगे, तो हम किस तरह के समाज का निर्माण कर रहे हैं?

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दलितों के लिए न्याय और समानता की लड़ाई

सौरभ की हत्या सिर्फ एक छात्र की मौत नहीं है, यह पूरे दलित समुदाय के लिए एक त्रासदी है। यह घटना हमारे समाज के उस घिनौने चेहरे को उजागर करती है, जो आज भी जाति और धर्म के आधार पर विभाजित है। इस हिंसा के खिलाफ सख्त कदम उठाना और दोषियों को सजा दिलाना न सिर्फ सौरभ के परिवार के लिए, बल्कि पूरे दलित समुदाय के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। समाज को अब जागरूक होकर जातिवाद के खिलाफ खड़ा होना होगा, ताकि ऐसी घटनाएं फिर कभी न हों।

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