बाबा साहेब अंबेडकर की 134वीं जयंती से ठीक पहले 4 अप्रैल 2025 को दिल्ली में डॉ.अंबेडकर के नाम पर एक मैगज़ीन का लॉन्च किया गया। यह लॉन्चिंग कार्यक्रम दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में हुआ। मैगज़ीन का नाम ” दी अंबेडकरियन क्रॉनिकल” (The Ambedkarian Chronicle) है। इस लॉन्चिंग कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर लेखिका अरुंधति रॉय, बहुजन मुद्दों पर काम करने वाला मीडिया हाउस “दी मूकनायक” कि फाउंडर एडिटर मीणा कोतवाल और पॉलिटिकल मुद्दों पर मुखरता से लिखने वाला मीडिया हॉउस “दी न्यूज़ मिनट” के फाउंडर एडिटर सुदीप्तो मंडल थे।

लॉन्चिंग कार्यक्रम में मैगज़ीन के फाउंडर एडिटर राहुल सोनपिंपल ने बताया कि यह क्रोनिकल बनाने का आइडिया उनके दिमाग में कैसे आया। साथ ही उन्होंने लोगों से बड़े स्तर पर दी अंबेडकरियन क्रॉनिकल से जुड़ने की बात कही। उहोंने कहा, हमेशा हमारे इतिहास को अल्टरनेटिव के तौर पर देखा गया है लेकिन यह अल्टरनेटिव कैसे हो सकता है ? जिस समाज से हम आते है वो बड़ी संख्या में है तो हमारा इतिहास तो “History of the Majority” है।“ राहुल कहते हैं कि दलितों को हमेशा इस दृष्टि से देखा गया है कि वो अपना इतिहास या अपने बारे में नहीं कह सकते और ना ही लिख सकते हैं।

यही कारण है कि हमें अपनी बात रखने के लिए प्लेटफार्म नहीं मिलते। मैं हमेशा से एक ऐसा प्लेटफार्म बनाना चाहता था जहाँ दबा-कुचला समाज अपनी बात लिख सके। वो क्या महसूस करता है ये बता सके। राहुल कहते हैं कि, “अंबेडकरियन क्रॉनिकल के ज़रिए हमने सिर्फ एक दलित मूवमेंट खड़ा नहीं किया है। यह मूवमेंट के साथ-साथ एक ऐसा प्लेटफार्म है जो लगातार मुद्दों पर प्रखर होकर बोलता रहेगा।
हर एक शब्द एक हथियार है: अरुंधती रॉय
मैग्जीन को लेकर मशहूर लेखिका अरुंधती रॉय ने कहा, “हर एक शब्द एक हथियार है। जिस भावना से ये मैग्जीन हमारे सामने आ रही है मुझे उम्मीद है कि यह पत्रिका नाराज़गी भरी होगी, लेकिन सुंदर भी होगी। यह हमें चाहिए। हमारे पास यही असली कलात्मक सुंदरता है। यह सिर्फ़ इसे पोषित करने, इसे उजागर करने और इसे प्रोत्साहित करने का सवाल है और मुझे लगता है कि हम इसे खूबसूरती से करने जा रहे हैं और आपको हर संभव तरीके से मेरी मदद और समर्थन मिलेगा।“

उन्होंने आगे कहा, “मुझे लगता है कि क्रोध अब हमारे अस्तित्व का हिस्सा है। मुझे लगता है कि मैं इस कमरे में मौजूद हर किसी के लिए यह कह सकती हूँ। यह हमारे द्वारा किए जाने वाले काम का हिस्सा है। लेकिन आप सभी की मदद से, हम इसे सही दिशा में ले जाएँगे और इस मैग्जीन को एक मील का पत्थर साबित करेंगे।
मीडिया में चॉइस नहीं है : मीना कोटवाल
दी मूकनायक की फाउंडर एडिटर मीना कोटवाल कहती हैं कि, “हमारे यहाँ मीडिया में विविधता नहीं है। यहां एक ही तरह के लोग काम करते है। यहाँ मेरिट सबके पास है लेकिन जब मौका देने की बात आती है तो जाति को आधार बनाया जाता है मेरिट को नहीं। किसी ने कहा है कि रेस में जीतने के लिए घोड़े को दौड़ना पड़ता है लेकिन सवाल ये है कि रेस में दौड़ने के लिए हमें पहले शामिल तो करो।“ अपने अनुभव पर बात करते हुए मीना कोटवाल ने कहा कि, “मैंने कई जगह काम किया और ये देखा कि मीडिया में जाति कैसे काम करती है। यहाँ आपको एक ही जाति के लोग मिलेंगे और सिर्फ एक जाति ही नहीं यहाँ एक ही जेंडर के लोग मिलेंगे। यहां महिलाएं नहीं है।

किसी बड़ी पोस्ट पर आप किसी दलित या आदिवासी को नहीं देखोगे।“ वह आगे कहती हैं कि, “ऐसा नहीं है कि 2014 के बाद ही ऐसा हुआ है कि मीडिया में सिर्फ अपर कास्ट हैं। 2006 में योगेंद्र यादव जैसे लोगों ने एक शोध की और बताया कि भारतीय मीडिया में एक ही तरह के लोग हैं।“ एक दूसरी रिसर्च का हवाला देते हैं मीना कहती है कि, “2020 में डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट नाम की एक रिसर्च ने बताया की 96 फीसदी लोगों को सिर्फ गोरे लोग ही टीवी पर देखना पसंद है..।“ आखिर में वह कहती हैं कि दलितों और आदिवासियों को दबाया गया है आगे आने नहीं दिया गया।
मजबूरी का नाम कांग्रेस : सुदीप्तो मंडल
सुदीप्तो मंडल ने मैगजीन के राजनीतिक पक्ष पर बात रखी। उन्होंने राहुल सोनपिंपल के काम को सराहा और कहा कि राहुल दलित, आदिवासियों में शिक्षा पर काम कर रहें हैं लेकिन एक मीडिया को चलाने के लिए “पैसा” बहुत मायने रखता है। वो आगे कहते हैं कि दलितों के लिए हमेशा पूछा जाता है कि दलित लेफ्ट अलायंस क्यों नहीं होता, दलित मुस्लिम अलायंस क्यों नहीं होता। सच तो यह है कि दलित बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बना रहा है और बस नाचता रहता है। और फिर आखिर में कांग्रेस की तरफ चला जाता है क्योंकि दलितों के लिए मजबूरी का नाम कांग्रेस है। मैगजीन पर बात करते हुए वह आगे कहते हैं कि पहले उन्होंने हमारी जमीन ली, फिर उन्होंने हमारी गरिमा छीन ली, फिर वे हमारी कहानियों के लिए वापस आए। हमारी कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं। इसलिए हमें कहानियों की कीमत तय करनी चाहिए।

क्या है दी अंबेडकरियन क्रॉनिकल :
अंबेडकरियन क्रॉनिकल एक मैगजीन और वेबसाइट है जिसे अंबेडकरवादी विचारधारा पर काम करने वाले राजनीतिक विश्लेषक राहुल सोनपिंपल और उनकी टीम ने बनाया है। इस मैगजीन में दलितों के जीवन, उन पर लिखे गए इतिहास, सिलसिलेवार तरीके से दलित उत्पीड़न के मामले और अंबेडकरवादी विचारों को शामिल किया गया है। इसका पहला संस्करण 4 अप्रैल को इनोग्रेशन के दौरान लोगों के सामने लाया गया। साथ ही इसके संबंध में सारी जानकारी इनकी वेबसाइट (theambedkarianchronicle.in) पर मौजूद है। राहुल और उनकी टीम ने पहले संस्करण में मंदिरों में जातिवाद, कैंपस में जातिवाद जैसे मुद्दों पर काम किया है।