सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण पर लिया संज्ञान, उच्चस्तरीय जांच का आदेश

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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण पर संज्ञान लिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में कानून बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक नेताओं ने जज के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट से रिपोर्ट मांगी है।

UP News: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 9 दिसंबर 2024 को विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में एक बयान दिया, जो विवादों का कारण बन गया। उन्होंने कहा, “यह भारत है और यह भारत में रहने वाले बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। यह कानून है, और बहुमत के हिसाब से काम करेगा।” जस्टिस यादव का यह बयान तत्काल चर्चा में आ गया क्योंकि इसमें उन्होंने बहुसंख्यक समुदाय की इच्छा को देश के कानून और संविधान का आधार बताया। यह बयान न केवल संविधान और न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि एक उच्च न्यायालय के जज के लिए असंवैधानिक भी माना जा रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

इस विवाद के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस शेखर कुमार यादव के भाषण पर संज्ञान लिया और मामले की जांच का आदेश दिया। अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से जज के भाषण का पूरा विवरण मांगा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन तो नहीं करता। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है और यह साफ कर देता है कि न्यायपालिका में किसी भी प्रकार की पक्षपाती टिप्पणी स्वीकार नहीं की जा सकती।

राजनीतिक और सार्वजनिक प्रतिक्रियाएँ

जस्टिस यादव के भाषण पर न केवल सुप्रीम कोर्ट, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी हंगामा मच गया। एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने जज के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक नोटिस पर हस्ताक्षर किए। ओवैसी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जस्टिस यादव का यह बयान संविधान के खिलाफ है और यह एक असंवैधानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। वहीं, सीपीआई नेता वृंदा करात ने भी जस्टिस यादव के भाषण को संविधान पर हमला बताते हुए उच्चस्तरीय जांच की मांग की। करात ने कहा कि न्यायपालिका में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए जो इस तरह के पक्षपाती विचारों का समर्थन करते हैं।

सीजेएआर की मांग

सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाली संस्था “कोऑर्डिनेशन ऑफ जस्टिस फॉर अलीन रिजेक्टर्स” (सीजेएआर) ने भी जस्टिस शेखर यादव के भाषण पर चिंता व्यक्त की है। संस्था ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि जस्टिस यादव के खिलाफ इन हाउस जांच शुरू की जाए। संस्था ने यह भी कहा कि जब तक यह जांच पूरी नहीं हो जाती, जस्टिस यादव से उनके सभी न्यायिक कर्तव्यों को वापस ले लिया जाए। उनके बयान से यह स्पष्ट होता है कि वह न्यायिक कार्यों में निष्पक्षता का पालन नहीं कर सकते हैं।

विवादित बयान की जड़ें

जस्टिस शेखर यादव के बयान के बाद से यह सवाल उठने लगा है कि क्या एक न्यायधीश को सार्वजनिक रूप से इस तरह के पक्षपाती विचार व्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए। उनका बयान भारत के धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ प्रतीत होता है, क्योंकि संविधान हर व्यक्ति के धार्मिक विश्वासों से परे समाज में समानता की गारंटी देता है। यादव का यह बयान न केवल न्यायपालिका के स्वतंत्रता के सिद्धांत को चुनौती देता है, बल्कि यह लोकतंत्र में बहुलतावादी दृष्टिकोण के खिलाफ भी है।

अदालत में इस पर हुई बहस

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज द्वारा दिए गए इस बयान को लेकर अब अदालत में बहस छिड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर तुरंत संज्ञान लिया है और जांच शुरू करने की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। अब यह देखना होगा कि जस्टिस यादव के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है और क्या न्यायपालिका में इस तरह के विचार रखने वालों के लिए कोई सजा निर्धारित की जाएगी।

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संविधान और न्यायपालिका पर सवाल

इस मामले ने एक बार फिर से संविधान और न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। क्या एक न्यायधीश को सार्वजनिक रूप से किसी विशेष समुदाय के खिलाफ बयान देने का अधिकार होना चाहिए? क्या इस तरह के बयान भारत के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करते? इन सवालों का जवाब आने वाले समय में अदालत के फैसले से मिलेगा, जो भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण हो सकता है।

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