दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने जनता के कल्याण के बजाय प्रचार पर भारी खर्च किया, जिससे दलितों और गरीबों की बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी बनी हुई है। सरकारी स्कूलों, अस्पतालों और दलित छात्रवृत्ति योजनाओं में फंड की कटौती हुई, जबकि 1100 करोड़ रुपये विज्ञापनों में बहा दिए गए। मोहल्ला क्लीनिक और फ्री बिजली-पानी योजनाएं भी केवल दिखावटी साबित हो रही हैं। दलितों के विकास के वादे कागजों तक सीमित रह गए, जबकि केजरीवाल सरकार जनता के पैसे से अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक विस्तार की योजना चला रही है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने खुद को गरीबों, दलितों और वंचित वर्गों के हितैषी के रूप में प्रचारित किया, लेकिन सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। हाल ही में सामने आए सरकारी आंकड़ों और बजट खर्चों की समीक्षा से साफ हो गया है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने जनता के लिए आवंटित बजट का बड़ा हिस्सा अपने प्रचार और राजनीतिक विस्तार पर खर्च कर दिया। दिल्ली में दलित बस्तियों की हालत बदतर होती जा रही है, सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की भारी कमी है, सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए दर-दर भटकते लोग मिल जाएंगे, लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके मंत्रियों की झोली में प्रचार का भरपूर बजट आ गया है।
दलित बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं का अकाल
दिल्ली के दलित बहुल इलाकों, जैसे संगम विहार, भजनपुरा, किराड़ी, सुल्तानपुरी, त्रिलोकपुरी, और सीमापुरी में हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। इन क्षेत्रों में न तो सफाई की समुचित व्यवस्था है और न ही पानी की सप्लाई सुचारू है। पिछले कई वर्षों से दिल्ली सरकार ने इन इलाकों के विकास के नाम पर बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन हकीकत में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। सड़कें टूटी हुई हैं, नालियां बजबजा रही हैं, और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति इतनी खराब है कि लोग इलाज के अभाव में तड़पने को मजबूर हैं।
AAP सरकार ने दलितों के लिए बनी योजनाओं को या तो धीमा कर दिया या पूरी तरह रोक दिया। उदाहरण के तौर पर, दलित छात्रवृत्ति योजना के तहत दी जाने वाली राशि में देरी हो रही है, जिससे हजारों गरीब दलित छात्र अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। वहीं, दिल्ली सरकार के ‘फ्री बिजली’ और ‘फ्री पानी’ जैसी योजनाएं भी केवल ऊपरी तौर पर कारगर दिख रही हैं, क्योंकि जब तक लोगों के घरों में पानी के कनेक्शन ही नहीं हैं, तब तक मुफ्त पानी देने का क्या मतलब?
बजट का पैसा विज्ञापनों में बहाया गया
दिल्ली सरकार का बजट हर साल 75,000 करोड़ रुपये से अधिक होता है, जिसमें से एक बड़ी रकम गरीबों, दलितों और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के कल्याण पर खर्च की जानी चाहिए थी। लेकिन रिपोर्ट्स बताती हैं कि अकेले 2023-24 में दिल्ली सरकार ने 1100 करोड़ रुपये सिर्फ विज्ञापन और प्रचार में उड़ा दिए। टीवी, अखबार, रेडियो और सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपनी छवि चमकाने के लिए जनता के पैसों का खुला दुरुपयोग किया। यह पैसा यदि दलित छात्रों की शिक्षा, दलित महिलाओं की सुरक्षा और दलित बस्तियों में आधारभूत ढांचे के विकास पर खर्च किया जाता, तो लाखों लोगों का जीवन बेहतर हो सकता था।
सरकारी स्कूल और अस्पतालों की जमीनी सच्चाई
AAP सरकार दावा करती है कि उसने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति ला दी, लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, शौचालयों की स्थिति दयनीय है और दलित बच्चों को मिलने वाली सुविधाएं लगातार घट रही हैं। सरकारी अस्पतालों की हालत यह है कि मरीजों को बिस्तर तक नहीं मिलते, और दवाइयों के नाम पर गरीबों को सिर्फ झूठे आश्वासन दिए जाते हैं।
खासकर दलित बस्तियों में मौजूद मोहल्ला क्लीनिक केवल नाम के लिए चल रहे हैं। कई जगहों पर डॉक्टर नियमित रूप से मौजूद नहीं होते, और दवाइयों की उपलब्धता भी बेहद कम है। इससे साफ होता है कि AAP सरकार केवल प्रचार के दम पर अपनी छवि बना रही है, जबकि जमीनी हकीकत पूरी तरह विपरीत है।
दलितों के लिए योजनाओं पर विराम, लेकिन वोट के लिए वादे बरकरार
AAP ने सत्ता में आने के लिए दलितों से कई वादे किए थे—फ्री शिक्षा, रोजगार, दलित व्यापारियों के लिए आसान ऋण, और झुग्गीवासियों के लिए पक्के घर। लेकिन इनमें से अधिकतर योजनाएं कागजों पर ही सिमट कर रह गईं। जो भी योजनाएं थीं, उनके बजट को या तो कम कर दिया गया या फिर पैसे का डायवर्जन कर दिया गया।
इसके बावजूद, जब चुनाव आते हैं, तो AAP दलित वोटरों को लुभाने के लिए फिर से बड़े-बड़े वादे करने लगती है। हाल ही में पार्टी ने कहा कि वह दलित युवाओं को ‘बिजनेस लोन’ देगी, लेकिन यह योजना भी सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रही।
जनता के पैसे से अपनी राजनीति चमका रहे केजरीवाल
दिल्ली सरकार ने जनता के पैसे का इस्तेमाल कर अपने राष्ट्रीय विस्तार की योजना बनाई है। पंजाब चुनाव जीतने के बाद अब AAP अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ रही है, और इसके लिए दिल्ली का सरकारी खजाना खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। पार्टी नेताओं के होर्डिंग्स, महंगे रोड शो, और देशभर में विज्ञापन कैंपेन के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जबकि दिल्ली की आम जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रही है।
क्या दलितों को मिलेगा न्याय?
दिल्ली के दलित समाज को अब यह समझना होगा कि केवल वादों और विज्ञापनों से उनका जीवन नहीं बदलेगा। उन्हें यह सोचना होगा कि जो सरकार दलितों के लिए बने बजट को अपनी पार्टी की ब्रांडिंग पर खर्च कर रही है, क्या वह वास्तव में उनके विकास के लिए काम कर रही है? केजरीवाल सरकार के झूठे प्रचार की सच्चाई अब धीरे-धीरे जनता के सामने आ रही है, और 2025 के चुनावों में दलित समुदाय के पास यह मौका होगा कि वे अपने वोट का सही इस्तेमाल कर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं।
AAP सरकार की नीतियों और वास्तविकता के इस विरोधाभास को देखते हुए, यह स्पष्ट हो जाता है कि दलितों और गरीबों के हित केवल नारों और विज्ञापनों तक सीमित रह गए हैं। दिल्ली में सच्चे सामाजिक न्याय की जरूरत है, जहां बजट का इस्तेमाल केवल राजनीतिक फायदे के लिए नहीं, बल्कि समाज के सबसे वंचित तबकों के उत्थान के लिए किया जाए।
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