ओमप्रकाश बाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस पर चंद्र शेखर आजाद ने ट्वीट कर उनको नमन किया और कहा,बहुजन साहित्य के प्रतिनिधि महान रचनाकार ओम प्रकाश वाल्मीकि जी के परिनिर्वाण दिवस पर उन्हें शत शत नमन।
बहुजन साहित्य के प्रतिनिधि महान रचनाकार ओम प्रकाश वाल्मीकि जी के परिनिर्वाण दिवस पर उन्हें शत शत नमन। pic.twitter.com/wplAFoQFyF
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) November 17, 2021
ओमप्रकाश बाल्मीकि उन शीर्ष लेखकों में से एक रहे है जिन्होने अपने आक्रामक तेवर से साहित्य में अपनी सम्मानित जगह बनाई है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होने कविता, कहानी, आ्त्मकथा से लेकर आलोचनात्मक लेखन भी किया है। अपनी आत्मकथा “जूठन” से उन्हें विशेष ख्याति मिली है। जूठन में उन्होने अपने और अपने समाज की दुख-पीडा-उत्पीडन-अत्याचार-अपमान का जिस सजीवता और सवेंदना से वर्णन किया वह अप्रतिम है। यह एक बहुत बडी उपलब्धी है कि आज जूठन का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. जूठन के अलावा उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में “सदियों का संताप”, “बस! बहुत हो चुका” ( कविता संग्रह) तथा “सलाम” ( कहानी संग्रह ) दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र (आलोचना) आदि है। बाल्मीकि जी अब तक कई सम्मानों से नवाजे जा चुके है जिनमें प्रमुख रुप से 1993 में डॉ.अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 1995 में परिवेश सम्मान है।
हिन्दी साहित्य और दलित साहित्य के शीर्ष साहित्यकार का अचानक असमय चले जाना बेहद दुखद है। वे मात्र अभी 63 साल के ही थे। वो अभी दो-तीन साल पहले ही देहरादून की आर्डनेंस फैक्ट्ररी से रिटायर हुए थे। उनका बचपन बहुत कष्ट-गरीब-अपमान में बीता। यही कष्ट-गरीबी और जातीय अपमान-पीडा और उत्पीडन उनके लेखन की प्रेरणा बने। उनकी कहानियों से लेकर आत्मकथा तक में ऐसे अऩेक मार्मिक चित्र और प्रसंगों का एक बहुत बड़ा कोलाज है। वह विचारों से अम्बेडकरवादी थे। बाल्मीकि जी हमेशा मानते थे कि दलित साहित्य में दलित ही दलित साहित्य लिख सकता है। क्योंकि उनका मानना था कि दलित ही दलित की पीडा़ और मर्म को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। ओमप्रकाश बाल्मीकि जी के अचानक जाने से दलित साहित्य का एक स्तंम्भ ढह गया है. उनकी क्षति बेहद अपूर्णनीय है।