भारत में पर्यावरणीय संकट का सबसे अधिक प्रभाव हाशिए पर पड़े समुदायों पर पड़ता है, जिनमें दलित और आदिवासी शामिल हैं। स्वच्छ पानी, स्वच्छता और प्रदूषण जैसी समस्याएं इन समुदायों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं।
Environment: वैश्विक पर्यावरणीय संकटों का सबसे गंभीर प्रभाव हाशिए पर पड़े समुदायों पर पड़ा है, और ये समुदाय जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभावों का सबसे पहले अनुभव करते हैं (नेस्मिथ एट अल 2021)। इन कमजोर आबादियों को पहले से ही कई सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और पर्यावरणीय संकटों ने इन समस्याओं को और बढ़ा दिया है। भारत, एक विकासशील देश होने के नाते, जहां जनसंख्या का बड़ा हिस्सा गरीब और हाशिए पर है, इस संकट का गहरा असर झेल रहा है। यहां पर्यावरणीय चुनौतियां अत्यधिक विविध हैं, जिनमें स्वच्छ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की कमी से लेकर आधुनिक उपभोक्ता समाज द्वारा उत्पन्न खतरनाक कचरे और प्रदूषण तक शामिल हैं।
पर्यावरणीय संकट का असर सबसे ज्यादा दलित समुदाय पर
हाशिए पर पड़े समुदायों पर पर्यावरणीय संकट का असर विभिन्न शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि पर्यावरणीय असमानताओं और स्वास्थ्य परिणामों के बीच एक मजबूत संबंध है, खासकर गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के बीच। संयुक्त राज्य अमेरिका में अश्वेत लोग और भारत में दलित और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय, जिनका पर्यावरणीय जोखिमों के संपर्क में आने का जोखिम अधिक है, संरचनात्मक बाधाओं का सामना करते हैं। इन्हें अक्सर ‘दूषित समुदायों’ के रूप में देखा जाता है, और उनके आसपास के पर्यावरणीय जोखिम उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
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पानी में प्रदूषण गंभीर हो गया
सावनी (2018) के अनुसार, 2008-2015 के दौरान भारत में प्रदूषित नदियों की संख्या दोगुनी हो गई है। इन नदियों में कच्चे सीवेज और औद्योगिक कचरे का निर्वहन किया जा रहा है, जो पानी की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। पानी में प्रदूषण इतना गंभीर हो गया है कि पीने योग्य पानी की भारी कमी हो गई है। सतही जल और भूजल दोनों में प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है, और यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ डाल रहा है, क्योंकि पानी से संबंधित बीमारियां देश में आधी बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं।
हाशिए पर पड़े समुदायों की विशेष चुनौतियां
दलित और आदिवासी समुदायों को पर्यावरणीय असमानताओं का सामना करने के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का भी शिकार होना पड़ता है। भारत में इन समुदायों की स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है, जहां पर्यावरणीय खतरों से उनके स्वास्थ्य और अस्तित्व को गहरा नुकसान पहुंचता है। उनके पास संसाधनों की कमी होने के कारण वे इन खतरों से निपटने के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाते।
साथ ही, शिक्षा की कमी और नौकरी के अवसरों में भेदभाव भी उनकी स्थिति को और अधिक खराब करता है। विशेष रूप से दलित और आदिवासी महिलाएं, जो दोहरे भेदभाव का सामना करती हैं—जातीय और लैंगिक—उनका स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति और भी अधिक चुनौतीपूर्ण बन जाती है।
देश में कानूनी नीतियों के बावजूद ये हाल
हालांकि, देश में नीतियों और कानूनी ढांचे के बावजूद, भारत में पर्यावरणीय संकटों से निपटने के प्रयास अक्सर हाशिए पर पड़े समुदायों की स्थिति को सुधारने में असफल होते हैं। खासकर दलित और आदिवासी समुदायों के लिए पर्यावरणीय और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है। इन नीतियों में स्वास्थ्य के असमान परिणामों और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता का ध्यान नहीं रखा जाता।