मैं देश का पहला बौद्ध चीफ जस्टिस बनूंगा- जस्टिस गवई

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14 मई को बीआर गवई देश के 52वे चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ लेंगे। यह भारतीय इतिहास में दूसरी बार है जब कोई दलित समाज से आने वाला जज चीफ जस्टिस बनेगा। बीआर गवई से पहले जी बालाकृष्णन देश के पहले चीफ़ जस्टिस बने थे। वर्तमान चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने बीआर गवई का नाम बतौर चीफ जस्टिस के लिए कानून मंत्रालय को भेजा था। जिसके बाद ये जानकारी सामने आई थी की 14 मई को जस्टिस बी आर गवई चीफ जस्टिस के रूप में शपथ लेंगे।

इस बीच मीडिया से औपचारिक बात चीत में बीआर गवई ने कहा  ”मेरे पिता ने बाबा साहब आंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। मैं देश का पहला बौद्ध चीफ जस्टिस बनूंगा।” उन्होंने ये भी कहा की मैं सभी धर्मों में विश्वास करता हूं। मैं मंदिर, दरगाह, जैन मंदिर, गुरुद्वारा – हर जगह जाता हूं।” देश के पहले बौद्ध चीफ जस्टिस बनने की दहलीज पर खड़े होने पर उन्होंने गर्व महसूस किया। संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा न्यायपालिका के खिलाफ कथित कड़े शब्दों के इस्तेमाल के मुद्दे पर जस्टिस गवई ने कहा, ”लोग कुछ भी कहें, लेकिन संविधान सर्वोच्च है।

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बी. आर. गवई बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों से प्रेरित एक न्यायप्रिय और संवेदनशील न्यायाधीश माने जाते हैं। बी. आर. गवई, महाराष्ट्र के एक दलित परिवार से आते हैं। उनके पिता रावसाहेब गवई राज्यसभा सांसद और अंबेडकरवादी नेता रहे थे। वह अपने संघर्ष, मेहनत और प्रतिभा के बल पर देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचे हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1985 में की थी, और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने और अब बनेंगे देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश। उनकी पहचान एक निष्पक्ष, स्पष्ट और संवेदनशील न्यायाधीश के रूप में होती है।

जस्टिस गवई ने कई मंचों पर कहा है “मेरा होना ही इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संविधान ने एक चपरासी के बेटे को सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचने का अवसर दिया है।” वो ये भी कहते हैं कि “संविधान सिर्फ कानून नहीं, एक सामाजिक क्रांति का दस्तावेज़ है।” उन्होंने डॉ. अंबेडकर को अपना बौद्धिक प्रेरणास्रोत बताया और कहा कि “बाबा साहेब ने जो मार्ग दिखाया, वही न्यायपालिका का आदर्श होना चाहिए।”

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वैसे तो हमारी न्यायपालिका जो पूरी तरह से कोलेजियम सिस्टम से चलती हैं जहां ऊँची जाति के जजों की भरमार है वहाँ दलित या बौद्ध जज का चीफ जस्टिस बनना खुशी की बात है लेकिन इसके बावजूद दलित समाज के कुछ बुद्धिजीवी लोग यह कह रहें हैं कि बी आर गवई का चीफ जस्टिस बनना दलितों के लिए कोई खास लाभ नहीं है. इसलिए दलितों को बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना नहीं बनना चाहिए. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि साल 2023 में अनुसूचित जाति के लिए दिए जाने वाले आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले का जस्टिस बी आर गवई ने समर्थन किया था. जिसके बाद देश के तीन राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में एससी आरक्षण में वर्गीकरण लागू कर दिया गया है.

बी आर गवई ने वर्गीकरण के फैसले का समर्थन करते हुए कहा था कि आरक्षण का लाभ सभी कमजोर वर्गों तक पहुँचना चाहिए न कि केवल एक ही हिस्से तक सीमित रहना चाहिए। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया गया। कुछ लोगों ने उन्हें ‘संविधान विरोधी और ‘दलित विरोधी’ तक कह डाला जिस पर बी आर गवई ने कहा कि, यह फैसला संविधान की भावना के अनुसार न्याय और बराबरी के सिद्धांत पर आधारित था।

 

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