केजरीवाल ने फ्री बिजली-पानी का वादा किया, लेकिन दलितों की झोपड़ियां आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। उनकी योजनाएं सिर्फ चुनावी दांव बनकर रह गई हैं, जबकि दलित समुदाय का संघर्ष जारी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में किराएदारों को फ्री बिजली और पानी देने का वादा किया है। इस ऐलान को बड़े पैमाने पर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई यह है कि यह योजना भी दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए केवल एक और छलावा प्रतीत होती है। यह कहानी बताती है कि कैसे केजरीवाल सरकार ने अब तक केवल योजनाओं के नाम पर राजनीति की है, लेकिन दलितों और वंचित वर्गों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है।
दिल्ली के दलितों को क्यों नहीं मिला योजनाओं का लाभ?
केजरीवाल सरकार के सत्ता में आने के बाद, उन्होंने फ्री बिजली, पानी, और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा जैसी योजनाओं का खूब प्रचार किया। हालांकि, इन योजनाओं का लाभ मुख्य रूप से मध्यम वर्ग और ऊपरी वर्ग के लोगों तक सीमित रहा। दिल्ली में लाखों दलित परिवार, जो झुग्गी-झोपड़ियों और किराए के मकानों में रहते हैं, इन योजनाओं से वंचित हैं। किराए पर रहने वाले अधिकांश लोग दलित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं, लेकिन अब तक उनकी जरूरतों को नजरअंदाज किया गया।
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दलितों के अधिकारों की अनदेखी
दिल्ली में दलित समुदाय अब भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों को आज भी साफ पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। सरकार ने दलितों के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई, न ही उनके बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के लिए कोई ठोस कदम उठाए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम होने के बावजूद, दलित बच्चे आज भी सरकारी स्कूलों में बेहतर शिक्षा पाने से वंचित हैं।
किराएदारों के लिए योजना: एक और राजनीतिक हथकंडा?
फ्री बिजली और पानी की योजना का वादा करना, खासकर किराएदारों के लिए, केजरीवाल सरकार की पुरानी रणनीति का हिस्सा लगता है। चुनाव से पहले बड़े वादे करना और चुनाव जीतने के बाद उन्हें ठंडे बस्ते में डाल देना आम बात हो गई है। यह सवाल उठता है कि जब झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले दलितों को आज तक मुफ्त पानी और बिजली नहीं मिला, तो किराएदारों को इस योजना का लाभ कैसे मिलेगा?
दलितों के लिए क्या हुआ?
दिल्ली की दलित बस्तियां आज भी गंदगी और अव्यवस्था का शिकार हैं। केजरीवाल सरकार ने केवल झुग्गी तोड़ने और “जहां झुग्गी वहां मकान” के नाम पर वादे किए, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हुआ। दलित महिलाओं को रोजगार देने या उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोई योजना नहीं बनी। दलित युवाओं को रोजगार देने के नाम पर केवल संविदा पर नौकरी दी गई, जो स्थायी समाधान नहीं है।
केजरीवाल के झूठे वादों से आगे बढ़ने की जरूरत
यह समय है कि दलित समुदाय इन खोखले वादों को पहचानकर अपने लिए ठोस योजनाओं और नीतियों की मांग करे। दलितों और पिछड़े वर्गों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की राजनीति से आगे बढ़कर उनके अधिकार सुनिश्चित किए जाएं। केजरीवाल सरकार को याद रखना चाहिए कि वादों की लंबी सूची बनाने से ज्यादा जरूरी है, उन वादों को पूरा करना।
निष्कर्ष
अरविंद केजरीवाल का किराएदारों के लिए नई योजना का ऐलान एक और चुनावी हथकंडा लग रहा है। दिल्ली के दलित और पिछड़े वर्गों ने अब तक केवल वादों की राजनीति देखी है। केजरीवाल सरकार को यह समझना चाहिए कि दिल्ली का दलित समुदाय जागरूक हो चुका है और अब वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने को तैयार हैं। दलितों को केवल योजनाओं के खोखले वादों से नहीं, बल्कि ठोस परिणामों की आवश्यकता है।
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