इतिहास का काला अध्याय: एक ऐसा कानून जिसने इतिहास के पन्नों को शर्मसार किया, ऐसा ना करने पर काटें जाते थे महिलाओं के स्तन

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त्रावणकोर (केरल) में 19वीं सदी में दलित महिलाओं को स्तन ढकने पर टैक्स देना पड़ता था। न चुकाने पर उनके साथ क्रूरता से पेश आते हुए स्तन काटने जैसी अमानवीय सज़ा दी जाती थी।

भारत के स्वतंत्रता पूर्व काल में कई अमानवीय और जातिगत भेदभावपूर्ण कानूनों का पालन किया जाता था, जिनमें से एक कुख्यात कानून “ब्रेस्ट टैक्स” था। केरल के त्रावणकोर राज्य में सदियों पहले लागू यह कानून दलित महिलाओं पर थोपे गए क्रूर सामाजिक अत्याचार का प्रतीक था। निचली जाति की महिलाओं को केवल इसलिए टैक्स चुकाना पड़ता था क्योंकि वे अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकना चाहती थीं। यह “मुलक्करम” नामक टैक्स महिलाओं की गरिमा और उनकी स्वतंत्रता का खुलेआम उल्लंघन था। त्रावणकोर के राजाओं और उनके सलाहकारों ने इस प्रथा को क्रूरता से लागू किया, और यदि कोई महिला इस टैक्स का विरोध करती, तो उसे समाज द्वारा घोर यातनाओं का सामना करना पड़ता।

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टैक्स का आधार: स्तन का आकार और जातिगत पहचान

त्रावणकोर के इस ब्रेस्ट टैक्स का अत्याचार इतना बढ़ गया था कि यह महिलाओं के स्तन के आकार पर निर्भर था। बड़ी संख्या में दलित जातियों, विशेषकर नाडार, एजवा, शेनार जैसी जातियों की महिलाओं को अपनी छाती खुली रखने के लिए बाध्य किया जाता था ताकि ऊंची जाति के लोग उनकी जाति को देखकर ही उन्हें पहचान सकें। जब अंग्रेज गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने 1859 में इसे समाप्त करने का आदेश दिया, तब भी इस क्रूर प्रथा को समाज ने स्वीकार नहीं किया और यह जारी रही। इस क्रूर कानून का पालन करवाने के लिए अधिकारी दलित महिलाओं पर कई तरह के सामाजिक और शारीरिक अत्याचार करते थे।

 

नांगेली: जिसने अपने साहस से क्रूरता को चुनौती दी

इस अमानवीय टैक्स के खिलाफ आवाज उठाने वाली नाडार जाति की एक साहसी महिला नांगेली ने इस अत्याचार के खिलाफ अनोखा और साहसिक कदम उठाया। नांगेली ने इस टैक्स का विरोध करते हुए अपने स्तनों को ही काट दिया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। उसकी इस शहादत ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया। नांगेली की आत्माहुति दलित महिलाओं के अधिकारों के लिए एक प्रेरणा बनी और लोगों में इस कुप्रथा के खिलाफ आंदोलन की चिंगारी भड़का दी। इस घटना के बाद महिलाओं और समाज के विभिन्न वर्गों ने एकजुट होकर इस क्रूर टैक्स के खिलाफ आवाज उठाई।

अंग्रेजों और मिशनरियों की मदद से खत्म हुई कुप्रथा

ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ उठी आवाजों ने पूरे राज्य में एक आंदोलन की शुरुआत कर दी। दलित महिलाओं ने अंग्रेजी मिशनरियों और ब्रिटिश शासन से मदद मांगी। अंग्रेजी प्रशासन और मिशनरियों ने इस कुप्रथा की निंदा की और इसे समाप्त करने का दबाव बनाया। अंग्रेज गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन के हस्तक्षेप और आदेशों के बावजूद भी ऊंची जाति के लोग इस टैक्स को बंद नहीं करना चाहते थे। लंबे संघर्ष के बाद, 1865 में अंततः महिलाओं को ऊपरी वस्त्र पहनने की स्वतंत्रता मिली।

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एक ऐतिहासिक जीत: 125 साल बाद मिली समानता

125 वर्षों तक चले इस अत्याचार को खत्म करने की लड़ाई त्रावणकोर के इतिहास में महिलाओं की साहसिक और अमानवीय अत्याचार के खिलाफ की गई लड़ाई का प्रतीक बनी। नाडार जाति की महिलाओं ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा दी। अंततः उनके साहस और संघर्ष ने जीत हासिल की। 1865 में ऊपरी वस्त्र पहनने की आजादी मिली, और यह भारत के समाज में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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