UP: दलित को नहीं मिल रहा खाद्यान्न योजना का लाभ, क्यों खाद्यान्न योजना का लाभ पाने से वंचित दलित?

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मिश्रपुर गांव के दलित प्रेमचंद पात्र होने के बावजूद खाद्यान्न योजना का लाभ पाने से वंचित हैं। सेक्रेटरी की लापरवाही से उनका आवेदन “खो” गया, और अब वह बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। यह मामला प्रशासनिक उदासीनता और दलितों के प्रति भेदभाव को उजागर करता है, जिससे जरूरतमंदों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

UP : मेजा तहसील के मिश्रपुर गांव के दलित प्रेमचंद पिछले एक महीने से खाद्यान्न योजना का लाभ पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने का वादा करने वाली व्यवस्था यहां पूरी तरह से विफल नजर आती है। प्रेमचंद, जो अत्यंत गरीब और जरूरतमंद हैं, ने ऑनलाइन आवेदन करके सरकारी खाद्यान्न योजना का लाभ लेने के लिए गांव की सेक्रेटरी रागिनी श्रीवास्तव को प्रार्थना पत्र जमा किया था। आवेदन के बाद वह यह सोचकर आश्वस्त थे कि अब उन्हें हर महीने राशन मिलेगा और उनकी परिवार की कठिनाईयां कुछ हद तक कम हो जाएंगी। लेकिन हुआ इसके बिल्कुल विपरीत।

सेक्रेटरी की लापरवाही या भेदभाव?

जब प्रेमचंद ने सेक्रेटरी से योजना के लाभ की स्थिति पूछी, तो सेक्रेटरी ने बताया कि उनका आवेदन उनसे “खो” गया है। यह जवाब किसी भी जिम्मेदार सरकारी अधिकारी के कर्तव्य के खिलाफ है। क्या यह मात्र लापरवाही है, या फिर इसके पीछे दलितों के प्रति भेदभाव की मानसिकता है? यह सवाल हर किसी के मन में उठता है। एक गरीब दलित परिवार के लिए यह स्थिति किसी त्रासदी से कम नहीं। सेक्रेटरी ने यह भी कहा कि अगर प्रेमचंद आवेदन की दूसरी प्रति उपलब्ध करवा दें, तो वह उसे सप्लाई विभाग में जमा करके योजना का लाभ दिलवा सकती हैं।

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दर-दर भटकता प्रेमचंद

खुद की गरीबी से जूझते हुए और परिवार का पेट पालने की जद्दोजहद में लगे प्रेमचंद, बार-बार सरकारी दफ्तरों और अधिकारियों के पास चक्कर लगाकर थक चुके हैं। वह उपजिलाधिकारी मेजा के पास अपनी शिकायत लेकर पहुंचे और उन्हें अपनी पीड़ा सुनाई। प्रेमचंद का कहना है कि वह पूरी तरह पात्र हैं, लेकिन फिर भी उन्हें योजना का लाभ नहीं दिया जा रहा। उनकी शिकायत यह भी है कि जब सेक्रेटरी को खाद्यान्न योजना जैसे महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी दी गई है, तो उनका आवेदन खोना एक गंभीर चूक है।

दलितों के साथ यह अन्याय कब तक?

मिश्रपुर का यह मामला कोई पहली बार नहीं है जब दलितों को सरकारी योजनाओं से वंचित रखा गया हो। यह देश के कई हिस्सों में आम समस्या बन गई है। गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ भ्रष्टाचार, भेदभाव, और प्रशासनिक लापरवाही के कारण सही लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता।

प्रशासन को जवाबदेह बनाना जरूरी

ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाना अनिवार्य है। सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि दलित समुदाय के लोगों को उनके अधिकार बिना किसी भेदभाव के मिलें। उपजिलाधिकारी मेजा को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करते हुए प्रेमचंद को खाद्यान्न योजना का लाभ दिलाना चाहिए और दोषी सेक्रेटरी पर कार्रवाई करनी चाहिए।

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दलितों और गरीबों के साथ न्याय

सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन तभी संभव है जब प्रशासन और समाज दोनों यह सुनिश्चित करें कि दलितों और गरीबों के साथ न्याय हो। मिश्रपुर के प्रेमचंद का मामला समाज के लिए एक आईना है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर हमारे सिस्टम में ऐसी खामियां क्यों हैं जो सबसे कमजोर वर्ग को ही सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं। यह समय है कि दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

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