कांग्रेस का दलित प्रेम या सियासी चाल: मिर्चपुर में दलितों को जिंदा जलाया गया, अब कांग्रेस कर रही समर्थन की बात

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आज, चुनावों के दौरान कांग्रेस दलितों के समर्थन की बात कर रही हैं. लेकिन कांग्रेस तब कहा थी जब मिर्चपुर कांड जैसी गंभीर घटनाएं घटित हुई थीं, उस समय कांग्रेस की भूमिका क्या थी? क्या उसने सच में  दलित अधिकारों की रक्षा की या सिर्फ चुनावी लाभ के लिए ही बयानबाजी की?

आज कांग्रेस दलित समुदायों को लुभाने के लिए विभिन्न रणनीतियों बना रही हैं . जैसे कि कुमारी शैलजा को चुनावी मैदान में उतारना। तो ये महत्वपूर्ण है कि वे अपने अतीत की घटनाओं की समीक्षा करें .जब मिर्चपुर कांड 2010 में एक गंभीर जातीय हिंसा की घटना हुई थी, जिसमें दलित समुदाय को निशाना बनाया गया। इस कांड ने हरियाणा में गहरी सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल मचाई, और कई गंभीर सवाल उठाए, खासकर उस समय की कांग्रेस सरकार की भूमिका पर।

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ये था मामला 

19 अप्रैल 2010 को मिर्चपुर गांव में एक गंभीर जातीय हिंसा की घटना घटी, जिसमें एक दबंग समुदाय के दामाद पर एक कुत्ते के भौंकने के विवाद ने एक बड़ा संघर्ष उत्पन्न कर दिया। विवाद के बाद, 21 अप्रैल की रात को दबंगों ने दलित बस्ती पर हमला कर दिया और घरों में आग लगा दी। इस हिंसा में 70 वर्षीय बुजुर्ग ताराचंद और उनकी दिव्यांग बेटी सुमन जिंदा जल गए, और बस्ती के करीब 25 घर भी आग की चपेट में आ गए।

इस घटना में लगभग 52 लोग घायल हुए और मिर्चपुर गांव और उसके आसपास के इलाके में तनाव और असुरक्षा फैल गई। जातीय और राजनीतिक विवाद ने इस कांड को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। घटना के बाद, पूरे क्षेत्र को छावनी में बदल दिया गया और सीआरपीएफ की टुकड़ियाँ तैनात की गईं। हालांकि, असुरक्षा की भावना के कारण जनवरी 2011 तक 130 से अधिक दलित परिवारों ने गांव से पलायन कर दिया।

उस समय कांग्रेस की सरकार थी

इस घटना ने यह सवाल उठाया कि उस समय कांग्रेस की सरकार ने दलित समुदाय के सुरक्षा और न्याय की दिशा में क्या कदम उठाए। आज जब कांग्रेस और अन्य दल चुनावी राजनीति में दलितों के समर्थन की बात कर रहे हैं, यह आवश्यक है कि वे अपने अतीत के कार्यों की समीक्षा करें और सुनिश्चित करें कि उनके प्रयास वास्तविक सामाजिक परिवर्तन और न्याय की दिशा में हों, न कि सिर्फ चुनावी लाभ तक सीमित हों।

मिर्चपुर एक राजनीतिक अखाड़ा बन गया था

मिर्चपुर कांड के बाद हरियाणा और विशेष रूप से मिर्चपुर एक राजनीतिक अखाड़ा बन गया था। इस घटना ने राज्य और केंद्रीय नेताओं को मौके पर जमकर राजनीति करने का मौका दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार इस विवाद के केंद्र में आ गई थी, और उनकी सरकार पर आरोप लगे कि उन्होंने इस गंभीर मामले पर उचित ध्यान नहीं दिया।

कांग्रेस, इनेलो, भाजपा, और हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के नेताओं ने इस मुद्दे को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया। हजकां, जो उस समय कांग्रेस का सहयोगी दल था, अब कांग्रेस में विलय हो चुकी है। कुलदीप बिश्नोई ने भी सरकार की आलोचना की और इसे एक संवेदनशील मुद्दा बताया।

जाट और गैर-जाट के बीच विवाद के रूप में भी पेश किया

मामले को जाट और गैर-जाट के बीच विवाद के रूप में भी पेश किया गया, जिससे सामाजिक और जातीय तनाव बढ़ गया। इस स्थिति को देखते हुए राहुल गांधी भी बिना पूर्व सूचना के मिर्चपुर पहुंचे और पीड़ित परिवारों से मिले। उनकी इस पहल ने राजनीति में और भी घमासान मचाया और इस मुद्दे पर कांग्रेस की सक्रियता को दर्शाया।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने और मामले को शांत करने की भरपूर कोशिश की। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों ने सक्रिय रूप से विरोधियों के हमलों का जवाब दिया और क्षेत्र में शांति स्थापित करने की कोशिश की। इस तरह, मिर्चपुर कांड ने न केवल सामाजिक और जातीय मुद्दों को उकेरा बल्कि राजनीतिक दलों के बीच गंभीर संघर्ष और आरोप-प्रत्यारोप की एक नई कहानी भी लिखी।

कांग्रेस पर लगे आरोप

मिर्चपुर कांड ने हरियाणा में व्यापक राजनीतिक हलचल मचा दी और कांग्रेस को आलोचनाओं के घेरे में लाया। 2010 की इस घटना ने न केवल जातीय तनाव को बढ़ाया बल्कि राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का एक नया दौर शुरू कर दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा कि उसने दलितों के खिलाफ हुई हिंसा पर उचित कार्रवाई नहीं की और स्थिति को नियंत्रण में लाने में विफल रही। इस आलोचना का फायदा उठाते हुए अन्य दलों ने भी अपने राजनीतिक हमले तेज कर दिए। हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के नेता कुलदीप बिश्नोई ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और सरकार की आलोचना की। भाजपा और इनेलो ने भी इस घटना को अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनाया।

राहुल गांधी ने भी बिना सूचना के मिर्चपुर का दौरा किया

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने भी बिना पूर्व सूचना के मिर्चपुर का दौरा किया और पीड़ित परिवारों से मुलाकात की, जिससे कांग्रेस की स्थिति को सुधारने की कोशिश की गई। इस पूरे विवाद ने मिर्चपुर को एक राजनीतिक अखाड़ा बना दिया और कांग्रेस को गंभीर सवालों का सामना करना पड़ा, जबकि अन्य दलों ने इसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया।

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मिर्चपुर कांड के समय कांग्रेस की सरकार की नीतियों और उनकी प्रतिक्रियाओं पर सवाल उठते रहे हैं, और आज चुनावी रणनीति में दलितों को लुभाने की कोशिशें भी आलोचनात्मक नजर से देखी जा सकती हैं। राजनीतिक दलों को केवल चुनावी लाभ के लिए ही नहीं, बल्कि असल में सामाजिक न्याय और समानता के लिए काम करना चाहिए।

 

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