चंद्रशेखर आजाद का सवाल: यूपी में कितने DM, SP और SHO दलित? मुख्य सचिव से मांगा आंकड़ा

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चंद्रशेखर आजाद ने यूपी में दलित अधिकारियों की संख्या जानने के लिए मुख्य सचिव को पत्र लिखा है, आरोप है कि प्रशासन में दलितों के प्रतिनिधित्व की कमी से जातिगत भेदभाव बढ़ रहा है।

UP News: उत्तर प्रदेश में चुनावी मौसम ने एक बार फिर से दलित राजनीति को गरमाने का कार्य किया है। भीम आर्मी के प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने एक महत्वपूर्ण पत्र के माध्यम से उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से प्रदेश में एससी-एसटी वर्ग के अधिकारियों की संख्या का ब्यौरा मांगा है। यह पत्र न केवल प्रशासनिक तंत्र में दलितों के प्रतिनिधित्व के मुद्दे को उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार जाति आधारित भेदभाव आज भी समाज में व्याप्त है।

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प्रशासनिक तंत्र में भेदभाव का आरोप

चंद्रशेखर आजाद ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा है कि प्रदेश में जाति देखकर पुलिस और प्रशासन में अधिकारियों की तैनाती की जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी पदों पर एससी-एसटी वर्ग के प्रतिनिधित्व की कमी के कारण जातिगत उत्पीड़न, शोषण, अपराध और हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। उन्होंने मुख्य सचिव से यह जानकारी मांगी है कि विभिन्न विभागों में कितने अपर मुख्य सचिव, सचिव, कमिश्नर, डीएम, एडीएम, डीजी, एडीजी, आईजी, डीआईजी, एसएसपी और एसपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर एससी-एसटी वर्ग के अधिकारी तैनात हैं।

सरकारी तंत्र में सुधार की आवश्यकता

आजाद ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि प्रशासनिक सेवा और पुलिस तंत्र में वंचित वर्गों के अधिकारों का सम्मान नहीं किया जा रहा है। उनके अनुसार, निर्णय लेने के पदों पर वंचित वर्गों के अधिकारियों का प्रतिनिधित्व न होना, समाज में अन्याय और अत्याचार के मुख्य कारणों में से एक है। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस महकमे में एससी-एसटी वर्ग के थानेदारों की संख्या की जानकारी मांगते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि राज्य में वास्तविक परिवर्तन लाना है तो प्रशासन में समानता और न्याय का होना आवश्यक है।

जातिगत उत्पीड़न की बढ़ती घटनाएं

पत्र में चंद्रशेखर ने जातिगत उत्पीड़न और शोषण की घटनाओं में बढ़ोतरी का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में एससी-एसटी समुदायों के खिलाफ अपराधों में इजाफा हुआ है, जो कि प्रशासन के लचर रवैये का परिणाम है। उनके अनुसार, प्रशासन में बैठे अधिकारियों की गैर जिम्मेदाराना स्थिति और निर्णय लेने में अयोग्यता ने वंचित वर्गों के खिलाफ अत्याचार को बढ़ावा दिया है।

दलितों का नेतृत्व: चंद्रशेखर आजाद की भूमिका

चंद्रशेखर आजाद ने इस पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। उनका यह कदम न केवल उत्तर प्रदेश में दलितों के हक के लिए एक आवाज उठाने का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दलित समुदाय को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा। उनकी सक्रियता से यह उम्मीद की जा रही है कि प्रशासनिक तंत्र में सुधार संभव होगा और दलितों को उनके हक मिलेंगे।

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दलितों के हक के लिए एक मजबूत आवाज

चंद्रशेखर आजाद का यह पत्र उत्तर प्रदेश में जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल प्रशासन की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि दलित समुदाय को एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा। जब तक प्रशासनिक तंत्र में एससी-एसटी वर्ग के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक जातिगत उत्पीड़न की घटनाओं में कमी नहीं आएगी। चंद्रशेखर आजाद की यह पहल निश्चित रूप से एक नई उम्मीद लेकर आई है, जो दलितों के हक के लिए एक मजबूत आवाज बनेगी।

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