SC/ST पर सुप्रीम कोर्ट का एक और बड़ा फैसला, किसी व्यक्ति के खिलाफ हर ‘अपमान’ को एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता

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कोर्ट ने स्कारिया की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई की, जिसमें केरल हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत देने से इन्कार किए गए आदेश को चुनौती दी गई थी। कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध तब माना जाएगा जब अपमानित करने का इरादा पूरे समुदाय को हो, न कि व्यक्तिगत टिप्पणियों पर… 

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक बड़ा फैसला सुनाया जिसमें कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध तब माना जाएगा जब अपमानित करने का इरादा पूरे समुदाय को हो, न कि व्यक्तिगत टिप्पणियों पर। इसी आधार पर, ये आदेश न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मरुनादन मलयाली चैनल चलाने वाले यूट्यूबर शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए दिया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने स्कारिया की ओर से केरल हाईकोर्ट के अग्रिम जमानत देने से इंकार करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका विधायक पीवी श्रीनिजिन की ओर से स्कारिया के खिलाफ दर्ज किए गए आपराधिक मामले में जमानत न मिलने के खिलाफ थी। विधायक श्रीनिजिन ने स्कारिया के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप था कि स्कारिया ने ‘मरुनादन मलयाली’ पर अपलोड किए गए वीडियो के माध्यम से जानबूझकर विधायक को अपमानित करने के लिए झूठे आरोप लगाए।

SC/ST समुदाय का अपमान है अपराध 

शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध तब तक नहीं माना जाएगा जब तक यह साबित न हो कि आरोपी का इरादा जाति-आधारित अपमान फैलाने का था। केवल इस आधार पर कि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से है, अपराध का मामला नहीं बनेगा। आरोपित के इरादे की जांच जरूरी है।

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कोर्ट ने कहा : 

पीठ ने कहा कि प्रारंभिक जांच से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह सिद्ध हो सके कि स्कारिया ने यूट्यूब पर वीडियो जारी करके अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ दुर्भावना फैलाने का प्रयास किया। वीडियो का अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से कोई सीधा संबंध नहीं था और इसका निशाना केवल शिकायतकर्ता था। एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध तभी लागू होगा जब आरोपी का इरादा एक समूह के रूप में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के खिलाफ दुर्भावना फैलाने का हो।

एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपमान

इस संदर्भ में, पीठ ने अदालतों की भूमिका पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि अदालतों को अपने न्यायिक दिमाग का उपयोग करते हुए यह तय करना चाहिए कि आरोप, सामान्य रूप से पढ़ने पर, कथित अपराध के तत्वों को पूरा करते हैं या नहीं। यह निर्णय स्वतंत्र रूप से करना चाहिए और शिकायत या एफआईआर में उल्लिखित प्रावधानों के प्रभाव में नहीं आना चाहिए। विशेष रूप से तब, जब आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर असर पड़ता है, जैसे कि अग्रिम जमानत की मांग के मामले में, अदालत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसका मतलब है कि अदालत को सावधानीपूर्वक और निष्पक्षता से निर्णय लेना चाहिए, ताकि आरोपी की स्वतंत्रता की रक्षा हो सके।

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