आधुनिक भारत के निर्माण में भारतरत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर का बहुआयामी योगदान

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डॉ. भीमराव अम्बेडकर और भारतीय अर्थव्यवस्था

हम जब भी भारत की सामाजिक आर्थिक या राजनीतिक मुद्दों की बात करें और डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की बात ना हो तो इसका अर्थ यह होगा कि हम उस राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, विषय के साथ अन्याय कर रहे हैं। डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1892 एक दलित परिवार में हुआ । उनका जिस जाति में जन्म हुआ कोई उस समय सोच भी नहीं सकता था कि आर्थिक सामाजिक राजनीतिक विषयों का वे कभी हिस्सा भी बन पाएंगे। पर शिक्षा और संघर्ष ऐसी चीज है जो मनुष्य की पहचान और व्यक्तित्व में निखार लाता है, और यह कथन बाबासाहेब ने सिद्ध करके दिखाया, और यही वजह रही कि जिस जाति के लोगों की समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में कोई हिस्सेदारी तक नहीं थी उनके बीच से निकलकर बाबासाहेब आधुनिक भारत के निर्माता बने और सामाजिक आर्थिक राजनीतिक मुद्दों का अहम विषय बने। डॉ. अंबेडकर समाज सुधारक के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री भी थे। उनके पास बीए, एमए, एम एच सी, पीएचडी, बैरिस्टर आदि के साथ कुल 32डिग्रियां थी तथा वे 9 भाषाओं के कुशल जानकार भी थे। बाबासाहेब आंबेडकर बाम्बे विश्वविद्यालय के एलफिंस्टोन कॉलेज से अर्थशास्त्र और राजनीतिक शास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त किए। इसके बाद कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1915 में अर्थशास्त्र से स्नाकोत्तर डिग्री प्राप्त किए और वहीं से 1917 में अर्थशास्त्र में ही पीएचडी की उपाधि प्राप्त किए। कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी प्राप्त करने के बाद लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से 1923 में पुनः डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त किए। दरसल अंबेडकर अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले प्रथम भारतीय थे। भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्या वित्तीय प्रणाली और रुपए मुद्रा पर उनके कई महत्वपूर्ण काम हैं।

वित्त आयोग की स्थापना और डॉ.अंबेडकर

बाबासाहेब ने जो पीएचडी की उसके थीसिस के तौर पर केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंधों के बारे में जो तर्क और विचार पेश किए, उससे आजादी के बाद भारत में केंद्र और राज्यों के आर्थिक संबंधों का खाका तैयार किया गया। इस तरह भारत में वित्त आयोग के गठन का श्रेय बाबासाहेब और उनके थीसिस  को जाता है।

रिजर्व बैंक की स्थापना और बाबा साहेब

1923 में बाबा साहेब की भारतीय मुद्रा और अर्थव्यवस्था से संबंधित एक पुस्तक आई जिसका नाम था “दी प्राब्लम आफ दी रुपी- इट्स ओरिजीन एंड इट्स सोल्यूशन”(रुपया का समस्या – इसके मूल और इसके समाधान) और इसी पुस्तक से शुरू हुई भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की कहानी। बैंक की कार्य पद्धति और इसका दृष्टिकोण बाबा साहब ने हिल्टन यंग कमीशन के सामने रखा जब 1926 में यह कमीशन भारत में रॉयल कमिशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस के नाम से आया था। तब इसके सभी सदस्यों ने बाबा साहेब की पुस्तक द प्रॉब्लम ऑफ रूपी – इट्स ओरिजन एंड इट्स सॉल्यूशन की वकालत की। फिर ब्रिटिशों की लेजिसलेटिव असेंबली ने इसे कानून का स्वरूप दिया और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया। और इस तरह बाबासाहेब के योगदान के फल स्वरुप 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।

डॉ.अंबेडकर और जलनीति(1945)

डॉ. अंबेडकर 20 जुलाई 1942 से लेकर 29 जून 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद के श्रम सदस्य थे।  4 वर्ष और 11 माह की इस अवधि में उन्होंने राष्ट्र निर्माण की दिशा में बहुत कुछ किया। इसी दौरान बाबा साहब ने दामोदर नदी की भयानक स्थिति को देखते हुए दामोदर प्रकल्प के बारे में सोचा। इसी संदर्भ में दामोदर प्रकल्प पर 3 जनवरी 1945 को कोलकाता के सचिवालय में पहली बैठक हुई जिसमें बंगाल सरकार, बिहार सरकार, और तत्कालीन केंद्रीय मध्यवर्ती सरकार के कई प्रतिनिधि शामिल हुए। डॉ. अंबेडकर ने दामोदर नदी प्रकल्प पर आधारित तीन परिषदों का नेतृत्व किया। इस परिषद में बाढ़ नियंत्रण और उसके सुरक्षा के बारे में क्या योजना होनी चाहिए, प्रकल्प के कारण नदी का नियंत्रण कैसा होना चाहिए, सूखे से कैसे निपटेंगे, विद्युत निर्माण कैसे किया जाएगा, इन विषयों पर डॉ. अंबेडकर ने विस्तृत मार्गदर्शन किया था। इस तरह डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में डैम निर्माण की परियोजना ने अच्छी प्रगति की और 1945 में प्राथमिक अभियांत्रिकी खाका तैयार हुई और इसे मान्यता मिली।

 हिराकुंड बांध उड़ीसा के महा नदी पर स्थित है जो 25.8 किलोमीटर लंबा है। यह भारत के स्वतंत्रता के बाद शुरू हुई पहली प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है। 1945 में श्रमिक सदस्य डॉ आंबेडकर की अध्यक्षता में बहुउद्देशीय उपयोग के लिए महानदी को नियंत्रित करने के संभावित लाभ को देखते हुए इसके लिए निर्णय लिया गया और इस तरह डॉ. अंबेडकर की आधारशिला से प्रेरित यह बांध 1957 में निर्मित हुई।

डॉ. अंबेडकर ने इस इसी प्रकार जल नीति के तहत 1948 में भाखड़ा नांगल परियोजना शुरू की गई जो सिंधु और सतलज नदी पर बनाया गया है। जो   1968 में पूर्ण हुई। सोन नदी घाटी परियोजना आदि परियोजनाओं का संपूर्ण श्रेय डॉ. अंबेडकर को जाता है।

उपर्युक्त मुख्य आर्थिक योगदानों के साथ-साथ डॉ. अंबेडकर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और भी अन्य योगदान दिया जैसे- रोजगार कार्यालय की स्थापना, कर्मचारी राज्य बीमा, ट्रेड यूनियंस को मान्यता, महंगाई भत्ता, हेल्थ इंश्योरेंस, प्रोविडेंट फंड, राष्ट्रीय कल्याण कोष, तकनीकी परीक्षण योजना, सेंट्रल सिंचाई आयोग, वित्त आयोग का गठन, सेंट्रल तकनीकी पावर बोर्ड आदि आर्थिक योगदान डॉक्टर अंबेडकर द्वारा दिया गया है।

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