केजरीवाल सरकार ने दलितों के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया, जैसे ‘अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ और आवास योजनाएं, लेकिन इनका जमीनी प्रभाव बहुत कम रहा। योजनाओं में पारदर्शिता की कमी और प्रशासनिक खामियां थीं, जिससे दलितों को वास्तविक लाभ नहीं मिला। सरकार ने इन योजनाओं का प्रचार तो किया, लेकिन चुनावी लाभ के लिए उनकी प्राथमिकता अधिक थी, न कि दलितों के असल सशक्तिकरण पर।
Delhi News: दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने हाल ही में भारतरत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम से ‘अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ योजना का ऐलान किया है, जिसका उद्देश्य दलित बच्चों को शिक्षा में प्रोत्साहन देना था। हालांकि, इस योजना के बारे में केजरीवाल सरकार का दावा है कि इससे दलित बच्चों में नई ऊर्जा आई है, परंतु असलियत इससे बहुत अलग है। यह योजना चुनावी प्रचार का हिस्सा अधिक प्रतीत होती है, न कि दलितों के वास्तविक उत्थान के लिए एक ठोस कदम।
क्या केजरीवाल का दलित प्रेम केवल दिखावा?
दिल्ली में 17 प्रतिशत दलित हैं और 70 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा, दलित और मुस्लिम मिलाकर 30 प्रतिशत आबादी बनाते हैं, जिसका सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ता है। यही कारण है कि आम आदमी पार्टी इस वर्ग का समर्थन पाने के लिए लगातार योजनाओं का ढिंढोरा पीट रही है। क्या अरविंद केजरीवाल ने ‘अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ जैसे योजनाओं की शुरुआत करके यह दिखाने की कोशिश की है कि वे दलितों के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे हैं? लेकिन इन योजनाओं का असल उद्देश्य केवल चुनावी लाभ प्राप्त करना है, न कि दलितों के लिए वास्तविक सुधार लाना।
दलितों के वोट बैंक को आकर्षित
‘अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ योजना का ऐलान करते वक्त केजरीवाल ने इस बात को भी जोर-शोर से उठाया कि डॉ. अंबेडकर के अपमान की घटना को याद करते हुए उन्होंने यह कदम उठाया। हालांकि, इस योजना का प्रचार करना और चुनावी मंच से इसे बड़ा मुद्दा बनाना केवल एक राजनीतिक चाल है, जिसका उद्देश्य दलितों के वोट बैंक को आकर्षित करना है।
योजनाओं का लाभ केवल कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित
केजरीवाल का दावा है कि वे दलितों को विदेश भेजने का ऐलान करके उनके भविष्य को उज्जवल बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन इस योजना के अंतर्गत कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई है। सरकारी योजनाओं में अक्सर भ्रष्टाचार और असफल क्रियान्वयन होते हैं, जिससे इसका लाभ केवल कुछ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित रह जाता है।
केजरीवाल की योजनाएं महज चुनावी नारे बनकर रह गई
वास्तविकता यह है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने दलितों के लिए जितनी भी योजनाएं बनाई हैं, उनका क्रियान्वयन बहुत कमजोर रहा है। इन योजनाओं का लाभ बहुत कम दलितों तक पहुंचा है, और अधिकांश को इससे कोई वास्तविक फायदा नहीं हुआ। इस प्रकार, केजरीवाल सरकार की दलितों के लिए बनाई गई योजनाएं महज चुनावी नारे बनकर रह गई हैं, जिनका उद्देश्य केवल सत्ता में बने रहना और चुनावी लाभ हासिल करना है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने सत्ता में आने के बाद दलितों के उत्थान के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास और सामाजिक सुरक्षा जैसी योजनाओं का वादा किया गया था। हालांकि, इन योजनाओं का वास्तविक प्रभाव बहुत कम देखने को मिला है। जबकि केजरीवाल सरकार ने दलितों के लिए कई बड़े दावे किए थे, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग रही है।
1. शिक्षा में असफलता: केजरीवाल सरकार ने दलित बच्चों की शिक्षा के लिए कई योजनाएं शुरू करने का वादा किया था, जैसे ‘जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना’ और ‘स्कॉलरशिप योजना।’ लेकिन इन योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाया जिनके लिए ये बनाई गई थीं। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की कोई ठोस योजना नहीं थी, जिससे अधिकांश दलित बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रहे। स्कॉलरशिप योजनाओं में भी पारदर्शिता की कमी थी, और कई बार दलित बच्चों के नाम ही सूची से बाहर कर दिए गए। इन योजनाओं से उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ।
2. स्वास्थ्य सेवाओं में उपेक्षा: केजरीवाल सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया था, जैसे ‘आयुष्मान भारत योजना’ और ‘दिल्ली स्वास्थ्य योजना’, जो दलितों और गरीबों के लिए थीं। लेकिन इन योजनाओं का लाभ धरातल पर बहुत कम मिला। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की भारी कमी थी, और इलाज के लिए लंबी कतारों ने दलित समुदाय की मुश्किलों को बढ़ाया। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी और दवाओं की उपलब्धता में भी समस्या रही, जिससे इन योजनाओं का कोई असर नहीं पड़ा। इसके कारण, दलितों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल सका और वे पहले की तरह ही कुपोषण और बीमारियों से जूझते रहे।
3. रोजगार और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में विफलता: केजरीवाल सरकार ने दलितों के लिए रोजगार और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का भी ऐलान किया था, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही रही। ‘श्रमिक कार्ड योजना’ और ‘पेंशन योजना’ जैसी योजनाओं का लाभ दलितों तक नहीं पहुंच सका। कई बार इन योजनाओं को लागू करते वक्त प्रशासनिक स्तर पर गड़बड़ियां हुईं, और लाभार्थी दलितों को समय पर पेंशन नहीं मिली। इसके अलावा, रोजगार के लिए कई बार दलितों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े, और उनकी आवाज को कभी नहीं सुना गया। सरकारी योजनाओं का लाभ केवल कुछ चुनिंदा लोगों को मिला, जबकि अधिकांश दलितों को इससे कोई फायदा नहीं हुआ।
4. आवास योजनाओं में असफलता: दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य था कि दलितों और गरीबों को उनके खुद के घर मिल सकें। लेकिन इस योजना के तहत कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, और दलितों को अपने घरों की स्थायी सुविधा नहीं मिल पाई। कई बार आवास के नाम पर सिर्फ आश्वासन दिए गए, लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं हुआ। आज भी दिल्ली में दलित समुदाय को उचित आवास की कमी है, और उन्हें झुग्गियों में जीवन बसर करना पड़ रहा है। यह योजना केवल कागजों तक सीमित रही, और वास्तविकता में इसका कोई असर नहीं पड़ा।
5. चुनावी राजनीति और दलितों के अधिकार: दिल्ली में दलितों की संख्या 17 प्रतिशत है, और 70 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा, दलित और मुस्लिम मिलकर 30 प्रतिशत आबादी बनाते हैं, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसलिए केजरीवाल सरकार दलितों के वोट बैंक को खींचने के लिए योजनाओं का ढिंढोरा पीट रही है। हालांकि, इन योजनाओं का उद्देश्य सिर्फ दलितों का वोट बैंक मजबूत करना प्रतीत होता है, न कि उनकी वास्तविक भलाई। सरकार का ध्यान केवल चुनावी लाभ पर है, जबकि दलितों के असल मुद्दों की अनदेखी की जा रही है।
निष्कर्ष:
केजरीवाल सरकार की योजनाओं का लक्ष्य तो दलितों के उत्थान और सशक्तिकरण का था, लेकिन इन योजनाओं का असर जमीनी स्तर पर बहुत कम देखने को मिला। सरकारी योजनाओं का लाभ केवल कुछ चुनिंदा लोगों तक पहुंचा, जबकि अधिकांश दलित समुदाय इनसे वंचित रहा। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आवास जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन में भारी खामियां और भ्रष्टाचार थे, जिससे दलितों के जीवन में कोई वास्तविक सुधार नहीं हो सका। केजरीवाल सरकार ने अपने वादों को पूरा करने में नाकाम रही है, और दलितों के लिए यह सिर्फ एक चुनावी नारा बनकर रह गया है।
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