भारत को आज़ाद हुए सात दशक से ज़्यादा हो चुके हैं। हमने विदेशी हुकूमत की ज़ंजीरों को तोड़ डाला, पर क्या सच में हम पूरी तरह आज़ाद हो पाए हैं? किसी देश की आज़ादी सिर्फ़ गुलामी से मुक्ति नहीं होती असली आज़ादी तब होती है जब हर व्यक्ति को बराबरी का हक़ मिले, जब समाज से जाति, छूआछूत, भेदभाव और असमानता पूरी तरह खत्म हो जाए। लेकिन अफ़सोस, आज भी भारत इन बुनियादी आज़ादियों के लिए संघर्ष कर रहा है। जातीय भेदभाव और सामाजिक असमानता आज भी हमारे देश की जड़ में बसी हुई है। यह विडंबना ही है कि हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं, लेकिन सामाजिक दृष्टि से आज भी बंटे हुए हैं। पर सौभाग्यवश, इस भारतभूमि पर एक ऐसे महामानव ने जन्म लिया जिसने इस अन्याय के ख़िलाफ़ क्रांति की मशाल जलाई बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर।
आज जब हम बाबासाहेब का जन्मदिन मना रहे हैं, तो यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि उनके संघर्षों व विचारधारा को याद करने और उन्हें आगे बढ़ाने का दिन है। यह हमें याद दिलाता है कि असली आज़ादी तब मिलेगी जब हर इंसान को समान अवसर मिलेगा, जब जातिवाद, भेदभाव और छूआछूत का नामोनिशान मिटेगा।
बाबासाहेब – सिर्फ संविधान निर्माता नहीं, एक राष्ट्र निर्माता
विश्व रत्न राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत को एक ऐसा संविधान दिया, जिसमें हर नागरिक को समान अधिकार मिले। लेकिन उनका योगदान सिर्फ कानून तक सीमित नहीं था वे सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। उन्होंने उस बहुसंख्यक आबादी को इंसान का दर्जा दिलवाया, जो सदियों से अपमानित और उपेक्षित रही थी।
महिलाओं के अधिकारों की बात हो या वंचित समाज को शिक्षा, सम्मान और बराबरी देने की राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब ने भारत के सामाजिक ढांचे को जड़ से बदलने का कार्य किया। इसलिए उन्हें केवल संविधान निर्माता कहना उनके योगदान को सीमित करना होगा वे सचमुच एक राष्ट्र निर्माता थे।
इसे और अच्छे से समझने के आइये बताते हैं
“बाबासाहेब अंबेडकर: संविधान निर्माता ही नहीं, राष्ट्र निर्माता भी”
प्रो. विवेक कुमार के विचारों पर आधारित प्रस्तुति
प्रख्यात समाजशास्त्री और सामाजिक चिंतक प्रोफेसर विवेक कुमार ने उन तमाम संकुचित सोच रखने वालों को तथ्यात्मक उत्तर दिया है, जो यह स्वीकार करने को भी तैयार नहीं होते कि डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल संविधान निर्माता ही नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता भी हैं।
प्रो. कुमार ने अपने विचारों में इस बात को बेहद सशक्त तरीके से स्थापित किया है कि डॉ. अंबेडकर का योगदान मात्र संविधान निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने स्वतंत्र भारत की आत्मा को दिशा दी, मूल्यों का आधार दिया और एक समतामूलक समाज की नींव रखी।
क्यों डॉ. अंबेडकर ही हैं भारत के संविधान निर्माता — प्रमाण के साथ प्रस्तुति:
1. प्रथम ऐतिहासिक वक्तव्य:
17 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में बाबा साहेब ने 3310 शब्दों का अपना पहला भाषण दिया, जिसमें उन्होंने संविधान के मसौदे में निहित सिद्धांतों को विस्तार से समझाया।
2. संविधान मसौदा समिति के अकेले स्तंभ:
यद्यपि मसौदा समिति में 7 सदस्य थे, लेकिन सक्रियता और नेतृत्व के स्तर पर यह पूरी जिम्मेदारी डॉ. अंबेडकर ने अकेले निभाई। वे 141 दिनों तक लगातार समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे।
3. जन प्रतिक्रियाओं का समावेश:
जब प्रारूप तैयार हुआ, तो उसे जनमत के लिए प्रस्तुत किया गया। प्राप्त 7635 सुझावों में से बाबा साहेब ने स्वयं पढ़कर 5162 संशोधन अस्वीकार किए और 2473 को स्वीकार कर संविधान में सम्मिलित किया। यह कार्य उनकी अतुलनीय अध्ययनशीलता और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
4. दूसरा ऐतिहासिक भाषण:
4 नवंबर 1948 को, डॉ. अंबेडकर ने संविधान के मसौदे की व्याख्या करते हुए 8334 शब्दों का भाषण दिया, जिससे उनकी दूरदर्शिता और स्पष्ट दृष्टिकोण झलकता है।
5. संविधान सभा में सक्रिय भागीदारी:
डॉ. अंबेडकर प्रतिदिन 8–9 बार खड़े होकर संविधान पर चर्चा करते थे। कई बार ऐसे भी दिन आए जब उन्हें एक ही दिन में 24 से 25 बार मार्गदर्शन करना पड़ा।
6. टी.टी. कृष्णमाचारी का कथन:
संविधान सभा में टी.टी. कृष्णमाचारी ने स्वयं स्वीकार किया था कि समिति के अधिकांश सदस्य या तो अनुपस्थित थे, अस्वस्थ थे, या व्यस्त। इस कारण, “संविधान का समस्त कार्य डॉ. अंबेडकर के कंधों पर आ गया, और उन्होंने यह कार्य अकेले किया।”
7. लगातार तीन वर्षों का परिश्रम:
बाबा साहेब ने लगभग तीन वर्ष – 2 साल, 11 महीने और 18 दिन – तक अनवरत संविधान निर्माण में योगदान दिया।
8. अंतिम ऐतिहासिक वक्तव्य:
25 नवंबर 1949 को, जब संविधान की अंतिम प्रति भारत के प्रथम राष्ट्रपति को सौंपी गई, तब बाबा साहेब ने संविधान की विशेषताओं, चुनौतियों और भविष्य की चेतावनियों पर आधारित 3900 शब्दों का अंतिम भाषण दिया।
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान मात्र कानूनी दस्तावेज तैयार करने तक सीमित नहीं था। उन्होंने भारत को लोकतंत्र, न्याय, समता और बंधुत्व की ठोस बुनियाद दी। यही कारण है कि वे केवल संविधान निर्माता नहीं, बल्कि सच्चे राष्ट्र निर्माता हैं — यह इतिहास है, तथ्य है, और अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब की मूर्तियाँ तोड़ना – विचारधारा को मिटाना नहीं होता
आज के आधुनिक युग में लोग इंसान से तो नफ़रत करते ही हैं, लेकिन बाबासाहेब की प्रतिमा से इतनी नफ़रत क्यों? आखिर क्यों देश में सबसे ज़्यादा तोड़ी जाने वाली प्रतिमाएँ बाबासाहेब की होती हैं?
ये नफ़रत केवल एक प्रतिमा से नहीं यह उस इंसान से है जिसकी विचारधारा ने सदियों पुरानी सामाजिक व्यवस्था की नींव हिला दी। यह उस चेतना से है जिसने गुलामी में जकड़े समाज को आज़ादी की सोच दी, बराबरी का हक़ दिया। ये नफ़रत चीख-चीखकर बताती है कि बाबासाहेब कितने ऊँचे विचारों वाले, दूरदर्शी और क्रांतिकारी चिंतक थे, जिन्हें मिटाने की कोशिशें पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहीं लेकिन हर बार असफल रहीं। मूर्तियाँ तोड़ी जाती रहीं, मगर हर टूटी मूर्ति के बदले कहीं न कहीं एक नई प्रतिमा स्थापित हुई। हर बार जब किसी ने उनके विचारों को दबाने की कोशिश की, उनके विचार और अधिक बुलंद होकर उभरे।
हर पत्थर, हर हमला उनकी विचारधारा की जड़ें और गहरी कर गया। क्योंकि राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब सिर्फ एक नाम नहीं हैं, वो समता, स्वतंत्रता और न्याय का प्रतीक हैं। उनकी मौजूदगी अब सिर्फ दीवारों पर नहीं, जन-जन के दिलों में है। मूर्तियाँ तो टूट सकती हैं, लेकिन वो विचार नहीं, जो एक समाज को इंसानियत का रास्ता दिखाते हैं। जितनी बार उन्हें मिटाने की कोशिश होगी, उतनी ही बार वो और मजबूती से लौटेंगे। क्योंकि बाबासाहेब कोई व्यक्ति नहीं एक परिवर्तन की लहर हैं, जो रुकती नहीं, थमती नहीं, और कभी मिटती नहीं।
राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब का अंतरराष्ट्रीय सम्मान: एक वैश्विक महान व्यक्तित्व
राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का प्रभाव अब भारत तक सीमित नहीं रहा। उनके विचार, संघर्ष और योगदान ने पूरी दुनिया को झकझोरा है। आज विश्व के कई प्रमुख देशों की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियाँ उनके सामाजिक दर्शन और न्याय-नीति पर गहन अध्ययन कर रही हैं।
विश्वविद्यालयों में ‘डॉ. अम्बेडकर चेयर’ की स्थापना:
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA):
कोलंबिया विश्वविद्यालय (जहाँ राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब ने पढ़ाई की थी) में उनके सम्मान में शोध कार्यक्रम और स्मारक।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित कई अन्य अमेरिकी विश्वविद्यालयों में “Dr. Ambedkar Chair” स्थापित की गई है, जहाँ उनके विचारों पर रिसर्च और पीएचडी स्तर के अध्ययन किए जा रहे हैं।
कनाडा:
कनाडा के कई विश्वविद्यालयों में डॉ. अंबेडकर चेयर की स्थापना की गई है। वहाँ राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब के सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और दलित विमर्श पर विशेष शोध हो रहे हैं।
यूनाइटेड किंगडम (UK):
यूके की कई यूनिवर्सिटियों में अंबेडकर स्टडीज़ पर केंद्रित पाठ्यक्रम और चेयर स्थापित की गई हैं। लंदन में जहाँ राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब ने शिक्षा ली थी, वहाँ उनके स्मारक और मूर्ति आज भी सम्मान के साथ स्थापित हैं।

ऑस्ट्रेलिया:
ऑस्ट्रेलिया में भी उच्च शिक्षा संस्थानों ने राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर की स्मृति में चेयर स्थापित की है। वहाँ उनके विचारों पर विभिन्न शैक्षणिक संगोष्ठियाँ आयोजित होती हैं।
जर्मनी:
जर्मनी की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों में राष्ट्र निर्माता बासाहेब पर रिसर्च को बढ़ावा दिया जा रहा है, और कुछ संस्थानों में Ambedkar Studies Chair की स्थापना की गई है।
विदेशों में मूर्तियाँ और स्मारक:
लंदन, टोक्यो, वॉशिंगटन डीसी, सिडनी, वैंकूवर जैसे कई शहरों में बाबासाहेब की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
ये मूर्तियाँ उनके प्रति विश्व का सम्मान ही नहीं, बल्कि उनकी विचारधारा को वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक हैं।
यह इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर अब केवल भारत के नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए सामाजिक न्याय, समानता और मानव अधिकारों के प्रतीक बन चुके हैं।
भारत देश के लिए गर्व की बात है और हम सभी को उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना चाहिए शुक्रगुजार होना चाहिए कि वो आये तो भारत के लोग भारत के नागरिक कहलाए।
बाबासाहेब की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने का श्रेय
आज भारत देश के हर कोने कोने में बाबासाहेब की विचारधारा जिंदा है। यह केवल बहुजन महानायक मान्यवर साहेब और सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहनजी की देन है। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान बाबासाहेब व बहुजन महापुरुषों के विचारों को पुनर्जीवित कर भारत के हर कोने तक पहुंचा दिया।
जब तक जातिभेद भाव असमानता ज़िंदा है, आज़ादी अधूरी है
राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने केवल संविधान नहीं, एक न्यायसंगत और समतामूलक भारत का सपना भी दिया। उन्होंने असली आज़ादी की नींव रखी जहाँ हर इंसान को बराबरी और सम्मान मिले।
बाबासाहेब एक विचारधारा हैं, जो हर बार और भी ताक़त के साथ लौटती है। उन्हें मिटाना नामुमकिन है, क्योंकि वे अब जन-जन की आत्मा में बसे हैं। उनकी राह पर चलकर ही हम सच्चे अर्थों में एक समतामूलक राष्ट्र बना सकते हैं यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
लेखिका – दीपशिखा इन्द्रा
Reference – दलित ऐजेंडा 2050