Barabanki| कौन कहता है आसमान में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों.. दुष्यंत कुमार की ये पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती हैं बाराबंकी के इस बच्चे रामसेवक पर जिसने अपनी मेहनत से उन लोगों को मुंह तोड़ जवाब दिया जो उसे पढ़ाई करते हुए देख कर उस पर हसंते थे. इतना ही नहीं राम सेवक ने जिले के डीएम से इनाम भी पाया और आज उसका नाम पूरे भारत में छाया हुआ है. UPSC की मोटिवेशन स्टोरी तो आप सबने सुनी होंगी लेकिन आज सुनिए यूपी के बाराबंकी के राम सेवक की कहानी जिसने अपने गांव में पहली बार 10वी की परीक्षा पास की है।
रामसेवक यूपी के बाराबंकी के निजामपुर गांव का रहने वाला एक महज 14 से 15 साल का लड़का है. अपने घर के भरण पोषण के लिए शादियों में रात भर सिर पर रोड लाइट उठाता है और शादियों का सीज़न नहीं होता तो मजदूरी करता है. काम से थक हार कर जब घर लौटता है तो रात को 2 घंटे पढ़ाई जरूर करता है. दो कमरों के कच्चे मकान में रामसेवक का परिवार रहता है. घर में कोई टेबल या चेयर नहीं है जहाँ बैठकर वो पढ़ाई कर सके. एक लकड़ी का तखत है जिस पर वो पढ़ाई करता है. और एक मचान पर अपना स्कूल बैग टांगता है. राम सेवक निजामपुर के रामकेवल नाम के स्कूल में पढ़ता है.
यह भी पढ़ें: हॉन्ग कॉन्ग में निलाम होंगे तथागत बुद्ध के अवशेष, अंबेडकरवादियों ने भारत सरकार से लगाई ये गुहार…
निजामपुर गांव में आज़ादी के 78 साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब वहाँ किसी छात्र ने 10वी की परिक्षा पास की है. जब रामसेवक के परिवार को पता चला तो रामसेवक की आंखे छलक उठी. मां ने अपने साड़ी के पल्लू से अपने बेटे के आंसू पोंछे और अपने बेटे की सफलता पर उसे शाबाशी दी. निजामपुर गांव में तकरीबन 40 घर हैं. ये अहमदपुर गांव का हिस्सा है. दो सौ लोगों की आबादी वाले इस छोटे से पुरवे में सभी दलित हैं.
ये लोग मेहनत, मजदूरी और खेती कर अपना गुजर-बसर करते हैं. गांव में एक प्रथमिक स्कूल है लेकिन दो वक्त की रोटी कमाने की जद्दोदहद के आगे कलम और किताब हमेशा हार जाती हैं. यही कारण है कि निजामपुर गांव में आज तक कोई 10वी की परिक्षा में नहीं बैठा. रामसेवक पहला छात्र है जो परिस्थिति से डरा नहीं और अपने परिवार के साथ-साथ पूरे गांव का नाम रोशन कर दिया।

गांव में पहली बार 10वीं की परीक्षा पास करने पर रामसेवक को बाराबंकी डीएम शशांक त्रिपाठी ने मिलने के लिए बुलाया। डीएम से मिलने जाने के लिए रामसेवक के पास न तो कपड़े थे और न ही जूते। इस दौरान रामसेवक के शिक्षकों ने उसे जूते और कपड़े दिलाए। रामसेवक ने डीएम से मिलने से पहले कभी जूते नहीं पहने थे। पैर की उंगलियां फैली होने के कारण बहुत ही मुश्किल से रामसेवक के जूते आए। डीएम ने रामसेवक की आगे की पढ़ाई यानी 11वी और 12वी की फीस माफ कर दी।
यह भी पढ़ें:हरियाणा: मदनहेड़ी में जाटों ने क्यों किया 80 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार ?
मीडिया से बात करते हुए रामसेवक कहते हैं कि जब वह पढ़ाई करते थे तो लोग उन पर हंसते थे. जब स्कूल जाते तो लोग कहते, “क्या होगा इससे! तुम पास नहीं हो पाओगे।” लेकिन अब हौसलों ने उड़ान भर ली है और अब ये रूकने वाली नहीं है. अब रामसेवक इंजीनियर बनना चाहता है। लोग उसकी मदद कर रहे। गांव की महिलाएं खुश हैं, उन्हें अपने बच्चों को आगे तक पढ़ाने का एक अवसर मिल गया।
इस सबके बीच एक अहम मुद्दा जिस पर बात करनी बेहद जरूरी है. आज़ादी के 78 साल बाद आज भी हमारे देश में ना जाने कितने निजामपुर जैसे और भी गांव या इलाके मौजूद है. जहाँ शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है. जहाँ बच्चे पढ़ना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते है लेकिन हर कोई रामसेवक जिनती हिम्मात नहीं दिखा पाता. देश के अधिकतर दलित और आदिवासी बहुल इलाकों में यही देखने के लिए मिलेगा क्योंकि यहाँ तक ना तो कोई सरकार पहुंचती है और ना ही सरकार की बनाई गई योजनाएं.