क्या कभी ब्राह्म्ण, ठाकुर, बनिया या यादव दूल्हे की बारात रोकी गई या कभी इनको घोड़ी से उतारा गया ?

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क्या कभी आपने ये सुना हो कि किसी ब्राह्म्ण, क्षत्रिए, वैश्य, ठाकुर, राजपूत, यादव या किसी अन्य तथाकथित उंची जाति के दूल्हे की बारात रोकी गई हो सिर्फ इसलिए क्योंकि वो उंची जाति से आता है? या उनकी बारात पर इसलिए पथराव हुआ है या विवाद हुआ हो कि उन्होंने तेज़ डीजे बजाया हुआ था। जाहिर सी बात है

हमारे देश को आज़ाद हुए 78 साल हो गए हैं और संविधान लागू हुए 75 साल। बाबा साहेब द्वारा बनाया गया संविधान सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय की गारंटी देता है. लेकिन आज भी हमारे देश में अनूसूचित जाति का दूल्हा अगर घोड़ी पर चढ़ता है तो उससे कहा जाता है कि “दलित को घोड़ी पर चढ़ने का अधिकार नहीं है।” बीते महीने फरवरी की बात करें तो यूपी, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों से ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं।

पहली घटना बनासकांठा जिले के पालनपुर तहसील के गदलवाड़ा गांव की है जहाँ 6 फरवरी को दलित दूल्हा घोड़ी चढ़ सके इसलिए 145 पुलिसवालों को बाराती बनना पड़ा। दलित दूल्हा जो पेशे से वकील है उसने पुलिस को लिखित शिकायत दी थी कि उनके गांव में आज तक कोई दलित समाज का दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठा। वो पहला दुल्हा है जो घोड़ी पर बैठेगा। उन्हें डर है कि उनके साथ कोई भी घटना हो सकती है। हमारे प्यारे भारतवर्ष के लिए कितना हास्यादपद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि दूसरों न्याय की वकालत करने वाले को भी अपने लिए न्याय की गुहार लगानी पड़ रही है.   

दूसरी घटना 20 फरवरी 2025 को राजस्थान के जालोर के हरियाली गांव में घटी। जहाँ जातिवादी मानसिकता के लोगों ने घोड़ी पर बैठे दलित दूल्हे को पहले घोड़ी से उतारा, बारातियों के साथ मारपीट की और फिर घोड़ी को ही लेकर फरार हो गए। इसके बाद पुलिस वालों का सहारा लेकर शादी करवाई गयी।

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तीसरी घटना 20 फरवरी बुलंदशहर में डीजे बजाने को लेकर हुए विवाद में ठाकुरों द्वारा दलित बारात पर हमला किया गया। एक दर्जन से ज्यादा लोग इसमें घायल हुए। इस मामले में ठाकुर समुदाय के 29 लोग और 50 अज्ञातों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये हमला तब हुआ जब बारात ठाकुर समाज के मोहल्ले से होकर गुज़री। ऐसा क्यों होता है सवर्ण समाज या तथकथित उच्च जाति कहे जाने वाले लोगों के केवल दलित समाज के शादियों में बज रहे डीजे से ही दुःख होता है? आखिर यह समाज दलितों को डीजे बजाते, अच्छा कपडा पहनते, बुलेट से चलते क्यों देखना नहीं चाहता?   

चौथी घटना उत्तर प्रदेश के मथुरा थाना क्षेत्र रिफाइनरी में 22 फरवरी को हुई। जब यादव समाज के बदमाशों ने सामंती और जातीय दंभ के चलते ब्यूटी पार्लर से लौट रहीं 2 दलित दुल्हनों को लूटा, मुंह पर कीचड़ लगाया। इसके बाद शादी वाले घर पहुंच कर दूल्हे के पिता का सिर फोड़ा जिसके कारन इन दो सगी बहनों की शादी टूटी गई।

इसके जैसी ही एक घटना 2 मार्च को यूपी के मेरठ से सामने आई जहाँ दलित दुल्हें की बारात में ठाकुरों ने जमकर हंगामा किया। दुल्हें और बारातियों के साथ मारपीट की। दूल्हे को सिर पर कई चोटें आई। पुलिस के मुताबिक ठाकुर समाज के लोग शराब के नशे में थे और बारात से साइड मॉँगने को लेकर बहस हुई जिसके बाद ठाकुरों ने बारात पर हमला कर दिया। लेकिन पीड़ितों का कहना है कि ठाकुरों ने कहा था कि “इस गांव में चमारों की ना ता बारात आएगी और ना ही उनका डीजे बजेगा”। यहाँ सिर्फ ठाकुरों की ही बारात निकलेगी। 

बीबीसी की 2019 की ये खबर देखिए जहाँ गुजरात के मेहसाणा जिले में दलित दूल्हे के घोड़ी चढ़ने पर ऊंची जाति के लोगों ने गांव के दलितों का बहिष्कार कर दिया था। इस मामले में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। 2019 में ही गुजरात के खम्भीसर गांव में दलित दुल्हे जयेश राठौड़ ने अपनी शादी में डीजे के साथ घोड़ी पर बैठ कर बारात निकालने का फ़ैसला किया तो उंची जाति वालों ने उन्हें धमकी दी। दलित परिवार ने पुलिस से सुरक्षा मांगी। पुलिस के आने के बावजूद गांव वालों ने जिस रास्ते से बारात जानी थी वहां हवन और राम भजन बजाने शुरू कर दिए। इस मामले पर पीड़ित पिता ने कहा था कि, “पुलिस ने उन्हें समझाया लेकिन वो नहीं माने और उन्होंने हमें बहुत परेशान किया। इस मामले पर अरवल्ली के पुलिस अधिकारी मयूर पाटिल ने बताया, ” हमने लोगों को समझाने की कोशिश की लेकिन वे लोग काफ़ी उग्र थे. गांव में दो गुटों के बीच पत्थरबाज़ी हुई जिसे कंट्रोल करने के लिए हमें लाठीचार्ज करना पड़ा. इस मामले में कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया था।

Image Credit: meta AI

 

गुजरात में 2019 का ही एक और मामला सुनिए। साबरकांठा के प्रांतीज में अनिल राठौड़ नामक दलित युवक की बारात में भी उनके घोड़ी चढ़ने पर ऊंची जाति के लोगों ने ऐसा ही बवाल मचाया था. अनिल के पिता रमेश भाई राठौर ने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि, ” मंदिर जाने के बाद बारात निकलने वाली थी लेकिन हमें वहां जाने से रोका गया. हमें डीजे ना बजाने को भी कहा गया. हमें पहले से ही डर था इसीलिए हमने पुलिस से मदद मांगी थी. फिर भी तनाव बढ़ा और बारात को तीन घंटे तक रोक कर रखा गया।

डर की वजह से हमारा डीजे वाला और फोटोग्राफ़र भी भाग गए. मंदिर पर ताले लगा दिए गए थे हमने ये ताले तोड़ कर दर्शन किए. इसके बाद हम बारात निकाल सके.2018 में राजस्थान सरकार ने विधानसभा में आकंड़े पेश करते हुए बताया था कि 2015 से 2018 के बीच राजस्थान में दलित दुल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की 38 घटनाएं सामने आईं थी। और यही नहीं 2016 में मध्य प्रदेश में एक दलित दूल्हे का हेलमेट लगाए फोटो चर्चा में आया था। उसकी वजह भी घोड़ी पर चढ़कर बारात आना था. विरोध कर रही भीड़ ने पहले उसकी घोड़ी छीनी, फिर पथराव शुरू किया। दूल्हे को घायल होने से बचाने के लिए पुलिस को उसके लिए हेलमेट का बंदोबस्त करना पड़ा।   

यहाँ सवाल सिर्फ दलितों की बारात रोकने का नहीं है। यहाँ सवाल है कि उन्हें ये जातिय दंश कब तक झेलना पड़ेगा ? हज़ारों सालों से निचले दर्जे का कहकर इन जातियों को प्रताड़ित कब तक किया जाएगा। समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व की बात जो हमारे संविधान में कही गयी है वो धरातल पर असल मायने में कब देखने को मिलेगी? ये घटनाएँ  उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कहते हैं कि जातिवाद अब नहीं है। तो उन्ही लोगों के लिए संत कबीर कहते हैं “जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई”. इसलिए ये मानने में थोड़ा भी गलत नहीं है कि जिस शख़्स ने कभी जाति के नाम पर होने वाले ज़ुल्म और अत्याचार न झेले हैं और न देखें हैं, वो भला हमारी कई पीढ़ियों के दर्द को कैसे समझ सकेंगे?

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क्या कभी आपने ये सुना हो कि किसी ब्राह्म्ण, क्षत्रिए, वैश्य, ठाकुर, राजपूत, यादव या किसी अन्य तथाकथित उंची जाति के दूल्हे की बारात रोकी गई हो सिर्फ इसलिए क्योंकि वो उंची जाति से आता है? या उनकी बारात पर इसलिए पथराव हुआ है या विवाद हुआ हो कि उन्होंने तेज़ डीजे बजाया हुआ था। जाहिर सी बात है नहीं? और अगर हाँ तो वो एक अपवाद के शिवा कुछ नहीं हो सकता। हमारे देश में जाति वो बिमारी है जिसका इलाज आने वाले सौ सालों में भी होना मुश्किल है। क्योंकि तथाकथित उच्च जातियों के लिए यह व्यवस्था दैवीय है जिसको आदिपुरुष ने बनाया है. इसके साथ साथ जाति व्यवस्था को तमाम धार्मिक ग्रंथों द्वारा वैद्यता भी प्राप्त है. इस परिस्थिति में जो व्यवस्था उच्च जातियों के जातीय गौरव का महिमामंडन हो ऐसी व्यवस्था को चुनौती देना छोटी बात नहीं है. 

ऐसी भयावह स्थिति में कुछ सवालों का उठना वाजिब है 5 ट्रिलियन इकॉनमी और भारत को विश्व गुरू बनाने वाले लोगों से कि इस देश में अनुसूचित जाति के लोग कब तक घोड़ी पर बैठकर बारात निकालने के लिए संघर्ष करते रहेंगे? उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार पर चिंतन कब होगा?

दूसरा सवाल उन धर्म के ठेकेदारों से जो “जात-पात की करो विदाई हम सब हिंदु भाई-भाई” का नारा लगा कर हिंदु राष्ट्र और अखंड भारत बनाने का सपना देख रहे हैं. लेकिन बात जब बंधुत्व दिखाने की आती है, भाई चारा दिखाने की आती है तब ये हिंदु लोग जातियों में क्यों बंट जाते हैं?  

दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम का ज्ञान देने वाले लोग अपने देश में तथकथित निम्न वर्ग के लोगों के साथ भाईचारा क्यों स्थापित नहीं कर पा रहें? कहीं प्रोफेसर विवेक की ये बात सही तो नहीं कि “हम इनको भाई समझे ये लोग हमको चारा” क्या यही है भाईचारा ?   

 

 

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