दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: दलित वोटरों का दिल जीतने की जंग, भाजपा की रणनीति और विपक्ष की चुनौती

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में दलित वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी ने माइक्रो स्तर की रणनीति अपनाई है। वाल्मिकी समाज और संत रविदास के नाम पर हिंदुत्व से जोड़ते हुए पार्टी ने केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार तेज कर दिया है। चांदनी चौक के प्रभारी कपिल देव अग्रवाल ने दलितों का समर्थन बीजेपी के साथ होने का दावा किया है। विपक्षी दलों ने इसे दिखावटी और चुनावी छलावा बताया है। दलित वोटरों के बंटवारे का डर बीजेपी और विपक्ष दोनों के लिए चुनौती बना हुआ है, क्योंकि यह चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

Delhi Politics: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 ने राजनीतिक दलों के बीच दलित वोट बैंक को लेकर जबरदस्त प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस बार दलित समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। पार्टी ने दिल्ली को 14 जिलों में बांटते हुए इन क्षेत्रों में केंद्रीय मंत्री, बड़े नेताओं और स्थानीय कार्यकर्ताओं की तैनाती की है। चांदनी चौक के प्रभारी और यूपी के मंत्री कपिल देव अग्रवाल के नेतृत्व में बीजेपी ने दलित समाज तक पहुंचने के लिए ग्राउंड स्तर पर कई योजनाएं शुरू की हैं। अग्रवाल ने कहा कि पार्टी वाल्मिकी समाज और संत रविदास से जुड़े दलित समुदाय को हिंदुत्व की मुख्यधारा में जोड़ने की कोशिश कर रही है। पार्टी यह दावा कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलितों के लिए जितने कार्य किए हैं, उतने किसी भी सरकार ने नहीं किए।

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बीजेपी की दलित वोटरों के लिए रणनीति

बीजेपी ने अपने प्रयासों को माइक्रो स्तर पर केंद्रित किया है। हर जिले में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को दलित समाज के साथ संवाद के लिए तैनात किया गया है। वाल्मिकी समाज और संत रविदास से जुड़े समुदायों को भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व के साथ जोड़ने की बात कही जा रही है। बीजेपी का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों और दलितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। पार्टी ने विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के लिए भी कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।

कपिल देव अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने गरीबों और दलितों को मुख्यधारा में लाने का काम किया है। उन्होंने संत रविदास के सम्मान और दलित समाज के उत्थान के लिए उठाए गए कदमों को बीजेपी का बड़ा राजनीतिक हथियार बताया।

विपक्ष का तर्क और आलोचना

हालांकि, विपक्षी दलों ने बीजेपी की इस रणनीति को एक दिखावटी और चुनावी स्टंट करार दिया है। आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी केवल चुनाव के समय दलित समुदाय के करीब आने का नाटक करती है। आप का आरोप है कि बीजेपी ने पिछले 9 वर्षों में दलित समाज की वास्तविक समस्याओं को हल करने के बजाय उनके साथ भेदभाव किया है। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री और बीजेपी सरकार केवल वादे करती हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इनका कोई प्रभाव नहीं दिखता।

कांग्रेस ने भी बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि दलितों के प्रति पार्टी का रवैया केवल वोट बैंक के लिए है। कांग्रेस ने संत रविदास और डॉ. अंबेडकर के विचारों का हवाला देते हुए बीजेपी पर दलित समुदाय को गुमराह करने का आरोप लगाया। विपक्षी दलों ने यह भी कहा कि बीजेपी की नीतियां केवल हिंदुत्व और ध्रुवीकरण पर आधारित हैं, जो समाज को बांटने का काम करती हैं।

दलित वोटरों की चुनौती और उनका रुझान

दिल्ली के दलित वोटर इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। उनकी बड़ी संख्या कई विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव परिणाम तय कर सकती है। हालांकि, दलित वोटरों के बीच यह असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि वे बीजेपी की योजनाओं पर भरोसा करें या विपक्ष के वादों पर।

बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि दलित वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा बसपा, कांग्रेस और आप के बीच बंट सकता है। पार्टी को यह डर है कि दलित समुदाय का समर्थन पूरी तरह से उसके पक्ष में नहीं जाएगा। दूसरी ओर, विपक्षी दलों के बीच भी इस वोट बैंक को लेकर संघर्ष जारी है।

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दलितों के लिए असली मुद्दे और राजनीतिक वादे

इस बार का चुनाव यह तय करेगा कि दलित वोटर किसके पक्ष में खड़े होते हैं। बीजेपी जहां केंद्र सरकार की नीतियों और प्रधानमंत्री मोदी के कामों को प्रचारित कर रही है, वहीं विपक्षी दल दलितों के असली मुद्दों को उठाकर बीजेपी की रणनीति को कमजोर करने की कोशिश में हैं।

दलित समाज का एक बड़ा वर्ग अब जागरूक हो चुका है और वह केवल वादों पर नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई पर ध्यान दे रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी की “हिंदुत्व और विकास” की रणनीति दलितों के दिलों को जीत पाती है या विपक्ष अपनी दलीलों से उन्हें अपने पक्ष में करने में सफल रहता है।

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