ओवैसी के बयान पर उठे सवाल: मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करना कितना उचित ?

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एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने की माँग की, जिसे दलित समाज और विश्लेषकों ने सख्ती से खारिज कर दिया। विश्लेषकों का कहना है कि एससी आरक्षण ऐतिहासिक जातिगत शोषण और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष का परिणाम है, जबकि मुस्लिम समाज ने इस तरह का कोई आंदोलन नहीं किया। दलित चिंतकों ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम समुदाय पहले से ही ओबीसी, एसटी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ ले रहा है। उनका मानना है कि यह माँग दलितों के अधिकारों पर सीधा हमला है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

संसद के हालिया सत्र में एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) आरक्षण में शामिल करने की माँग करते हुए कहा कि यह “इतिहास में हुए अन्याय को सुधारने” का एक तरीका है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29, 13, 14 और 21 का हवाला देते हुए दावा किया कि धर्म परिवर्तन के अधिकार और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर हमले हो रहे हैं। ओवैसी ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि मुस्लिम समाज की पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में आरक्षण मिलना चाहिए ताकि उनकी स्थिति सुधर सके।

विभिन्न दलित चिंतकों, शिक्षाविदों और राजनीतिक विश्लेषकों ने कड़ी आपत्ति जताई

ओवैसी के इस बयान पर विभिन्न दलित चिंतकों, शिक्षाविदों और राजनीतिक विश्लेषकों ने कड़ी आपत्ति जताई। इस मामले पर डॉ हवलदार भारती (इतिहासकार) ने कहा, “असदुद्दीन ओवैसी द्वारा मुस्लिम समाज के लिए एससी लिस्ट में आरक्षण मांगना बेमानी है। आरक्षण जातिगत आधार पर दिया गया है ताकि उन जातियों को आगे लाया जा सके जिन पर सदियों तक अत्याचार हुआ। आरक्षण आर्थिक या धार्मिक आधार पर नहीं दिया जा सकता। असदुद्दीन ओवैसी साहब को संसद में ऐसी बातें या मांग उठाने से पहले सोचना चाहिए।

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एससी आरक्षण का इतिहास और मुसलमानों की भूमिका

आरक्षण का इतिहास पूना पैक्ट से जुड़ा है, जो महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अंबेडकर के बीच हुआ समझौता था। इस समझौते के तहत अनुसूचित जातियों को अलग निर्वाचन मंडल का अधिकार छोड़कर आरक्षण दिया गया। इस संदर्भ में दलित समाज के विचारकों का कहना है कि “मुस्लिम समाज ने कभी जातिगत भेदभाव के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया। इस्लाम समानता का दावा करता है, तो फिर आरक्षण की माँग क्यों?”, 

दलित विचारक दिलीप मंडल ने लिखा, “हिंदू अछूत जातियों ने छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया, मनुस्मृति जलाई, पत्थरों की मार झेली। तब जाकर उन्हें यह अधिकार मिला। मुसलमानों ने ऐसी कौन सी लड़ाई लड़ी? मुफ़्त की मलाई खाने के लिए यह माँग अस्वीकार्य है।”

https://x.com/Profdilipmandal/status/1868549931977314408?t=wbSc8iUiwytGcRdt4pTbpw&s=19

मुस्लिम समाज को मिले आरक्षण के मौजूदा प्रावधान

आरक्षण पर सवाल उठाते हुए कई विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि मुस्लिम समुदाय पहले से ही अन्य श्रेणियों में आरक्षण का लाभ उठा रहा है:

ओबीसी आरक्षण: मुस्लिम समुदाय की पिछड़ी जातियाँ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत आरक्षण का लाभ लेती हैं।

एसटी आरक्षण: कुछ आदिवासी मुस्लिम समुदायों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के तहत आरक्षण मिलता है।

ईडब्ल्यूएस आरक्षण: जो मुस्लिम आरक्षण की अन्य श्रेणियों में नहीं आते, वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के तहत आरक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
अनुच्छेद 30 का विशेष अधिकार: मुस्लिम समुदाय को शैक्षणिक संस्थानों में 100% स्टाफ अपने समुदाय से रखने और सरकारी वेतन पाने की अनुमति है।

“एससी कोटे में मुस्लिमों की घुसपैठ की कोशिश बर्दाश्त नहीं होगी”

दलित समाज के प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया। विकास कुमार जाटव ने कहा, “एससी आरक्षण जातिगत शोषण और छुआछूत के कारण दिया गया था। मुसलमानों को एससी कोटे में शामिल करना दलितों के अधिकार छीनने के समान है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “2012-2017 के दौरान दलितों पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम अब दलित आरक्षण में घुसने की कोशिश कर रहे हैं। दलित समाज इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।”

https://x.com/vkjatav84/status/1868502742253105452?t=AsPMgEx-7sA3ARc0hJzWhA&s=19

सच्चर कमेटी और मुस्लिम आरक्षण का सच

ओवैसी ने संसद में सच्चर कमेटी का उल्लेख करते हुए मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने की बात कही। लेकिन विशेषज्ञों ने इसे भी खारिज कर दिया। उनका कहना है कि “सच्चर कमेटी ने केवल 15 लाख ऐसे मुस्लिमों की पहचान की जो एससी से धर्म बदलकर मुस्लिम बने थे। ये सभी ओबीसी श्रेणी में आरक्षण का लाभ पहले ही ले रहे हैं।”

“मुस्लिम आरक्षण की माँग झूठे नैरेटिव पर आधारित”

इस विषय पर लिखने वाले विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार ने कहा, “मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की माँग एक झूठे नैरेटिव पर आधारित है। इस्लाम समानता का दावा करता है, लेकिन अगर उसमें जातिवाद नहीं है, तो आरक्षण की माँग क्यों? मुसलमानों ने अपनी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ कौन सा आंदोलन चलाया है?”

दलित समाज की एकजुटता का संदेश

ओवैसी के बयान पर दलित समाज के बीच एकता का संदेश गया है। दिलीप मंडल ने कहा, “एससी में मुसलमानों की एंट्री रोकने के लिए दलित समाज एकजुट है। बाबा साहब ने संविधान में पहले ही व्यवस्था कर दी थी कि अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ केवल हिंदू, बौद्ध और सिख दलितों को मिलेगा। मुसलमानों को इसमें घुसने का कोई अवसर नहीं मिलेगा।”

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“मुस्लिम आरक्षण का सवाल एक राजनीति चाल”

ओवैसी द्वारा उठाया गया यह मुद्दा केवल राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश माना जा रहा है। दलित समाज और उनके चिंतकों ने साफ संदेश दिया है कि अनुसूचित जाति का आरक्षण किसी भी हाल में मुसलमानों को नहीं दिया जाएगा। डॉ. हवलदार भारती के शब्दों में, “एससी आरक्षण उन जातियों के लिए है, जिन्होंने सदियों तक अपमान और शोषण सहा है। यह उनके अधिकारों को सुरक्षित करने का प्रयास है, जिसे कमजोर करना सामाजिक न्याय के प्रति अन्याय होगा।”

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