हरियाणा में जिस तरफ जाएगा दलित उसकी बनेगी सरकार.. 18% दलित बदलेंगे चुनवी समीकरण

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हरियाणा में दलित समुदाय की आबादी लगभग 18% है, जो कि चुनावी समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अगर इस समुदाय का बड़ा हिस्सा किसी एक पार्टी की तरफ जाता है, तो वह पार्टी सत्ता में आ सकती है। यानी हम कह सकते है कि हरियाणा का दलित जिस तरफ जाएगा सरकार उसी की ही बनेगी .

Haryana Vidhan Sabha Election : हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों के बीच सियासी अखाड़ा सज चुका है, और दलित वोट बैंक को साधने की कोशिशें तेज हो गई हैं। दरअसल हरियाणा में दलित समुदाय की आबादी लगभग 18% है, जो कि चुनावी समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अगर इस समुदाय का बड़ा हिस्सा किसी एक पार्टी की तरफ जाता है, तो वह पार्टी सत्ता में आ सकती है।

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दलित वोटों की पहले भी चुनावों में राजनीति का बदला रुख

दलित वोटों की इस स्थिति ने कई चुनावों में राजनीति का रुख बदला है, और आने वाले चुनावों में भी यह एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। विभिन्न राजनीतिक दल इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों की घोषणा कर रहे हैं। क्योंकि इसका असर चुनाव के नतीजों पर काफी हद तक पड़ सकता है। यही कारण है कि बीजेपी , कांग्रेस, बसपा, ASP और अन्य क्षेत्रीय दल जैसे इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल), जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) सभी दलित वोटरों को आकर्षित करने के लिए अपने चुनावी एजेंडे में उन्हें प्राथमिकता दे रहे हैं।

दलितों को लुभाने की कोशिश

दलितों के लिए विशेष घोषणाएं, योजनाओं का वादा, और उनके मुद्दों को जोर-शोर से उठाया जा रहा है। विभिन्न दल अपनी-अपनी रैलियों और जनसभाओं में इस समुदाय के लिए विशेष कदम उठाने की बात कर रहे हैं। चूंकि हरियाणा की राजनीति में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं, दलित वोटों का झुकाव चुनाव परिणाम में निर्णायक हो सकता है।

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कौन-सा दल दलितों के अधिकारों और कल्याण के लिए काम करेगा

चुनाव के समय दलितों के लिए विशेष घोषणाएं, योजनाओं का वादा, और उनके मुद्दों को जोर-शोर से उठाया जाना आम बात है। राजनीतिक दल दलित समुदाय को लुभाने के लिए विशेष घोषणाएं करते हैं साथ ही दलित समुदाय के मुद्दे जैसे कि सामाजिक भेदभाव, जातीय हिंसा, भूमि अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य में असमानता को भी चुनावी एजेंडे में जगह मिलती है। राजनीतिक दल इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाते हैं ताकि दलितों का समर्थन प्राप्त कर सकें।

हालांकि, सवाल यह है कि ये योजनाएं और घोषणाएं कितनी प्रभावी रूप से लागू होती हैं और क्या चुनाव के बाद भी इन पर गंभीरता से काम किया जाता है। अक्सर देखने को मिलता है कि चुनाव के बाद दलितों के असल मुद्दों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना चुनावी वादों में होता है। इसलिए, इस बार भी दलित समुदाय यह देखेगा कि कौन सा दल उनके अधिकारों और कल्याण के लिए वास्तविकता में काम करेगा, न कि केवल चुनावी फायदे के लिए।

हरियाणा में दलितों 18% आबादी

बता दें आपको, हरियाणा में दलितों की जो 18% आबादी है, हरियाणा में दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा जाटव समुदाय से आता है, और यह राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। जाटव समुदाय की आबादी, विशेषकर मायावती और चंद्रशेखर जैसे नेताओं के समर्थन से, राजनीतिक समीकरणों को बदलने की क्षमता रखती है।

मायावती और चंद्रशेखर से अन्य दल हुए चिंतित

अन्य दलों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि यदि मायावती या चंद्रशेखर जैसे नेता दलितों का समर्थन प्राप्त करते हैं, तो यह उनके लिए  परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। खासकर 49 विधानसभा सीटों पर, जहाँ इनकी जनसंख्या 10% से ज्यादा है, वहां ये नेता मजबूत दावेदारी कर सकते हैं और अन्य दलों के लिए चुनौती बन सकते हैं। अब इन दलों को अपने दलित वोट बैंक को बचाए रखने के लिए रणनीतिक कदम उठाने पड़ेंगे।

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वोटिंग की तारीख नजदीक आते-आते यह लड़ाई और तेज हो जाएगी, और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल दलित वोट बैंक को अपनी ओर खींचने में कामयाब होता है।

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